Tuesday, December 15, 2015

१ पौष 15 दिसम्बर 2015 😶 “हम अज्ञानी ! ” 🌞 🔥🔥 ओ३म् त्वद् विश्वा सुभग...

१ पौष 15 दिसम्बर 2015

😶 “हम अज्ञानी ! ” 🌞

🔥🔥 ओ३म् त्वद् विश्वा सुभग सौभगान्यग्ने वि यन्ति वनिनो न वया: । 🔥🔥
🍃🍂 श्रुष्टी रयिर्वाजो वृत्रतूर्ये दिवो वृष्टिरीडयो रीतिरपाम् ।। 🍂🍃

ऋक्० ६ । १३ । १

ऋषि:- भरद्वाजो बार्हस्पत्य: ।। देवता- अग्नि: ।। छन्द:- पक्त्ङि:।।

शब्दार्थ- हे अग्ने! हे सुन्दर ऐश्वर्यवाले!
तुझसे ही सब सुन्दर ऐष्वर्य विविध प्रकार से निकलते हैं, जैसे वृक्ष से शाखाएँ। तुझ वृक्ष का सेवन करनेवालों को शीघ्र ही भौतिक धन युद्ध में बल अन्तरिक्ष की दिव्य वृष्टि तथा इन जलों को गति देनेवाली स्तुत्य ज्योति प्राप्त हो जाती है।

विनय:- हम कितने मुर्ख हैं कि मूल को न सींचकर पत्तों को पानी दे रहे हैं।
हे अग्ने!
तुम तो सब सौभागों के कल्परूप हो, परन्तु हम एक तुम्हारा सेवन न कर अपनी अनगिनत इच्छाओं के, इष्ट वस्तुओं के पीछे मारे-मारे फिर रहे हैं। इस संसार में जो कुछ विविध प्रकार के सौभाग्य के सामान दृष्टिगोचर हो रहे हैं, जो भी कुछ सुन्दर ऐष्वर्य दीख रहे हैं वे सब-के-सब एक तुमसे ही निकले हैं, तुमसे ही सर्वत्र फैले हैं। यह विश्व जिन अनन्त प्रकार की सुन्दर सम्पत्तियों से भरा पड़ा है उन सबके मूल में, हे सुभग! तुम ही हो। यदि हम एक तुम्हारी उपासना करें, तो हमारी शेष सब उपास्य वस्तुएँ हमें स्वयमेव मिल जाएँ। जब हम तेरा सेवन करेंगे तू हमें जब जिस ऐष्वर्य की, जिस क्रम से, जिस मात्रा में आवश्यकता होगी, वह ऐष्वर्य उसी क्रम, उसी मात्रा में हमें ठीक-ठीक मिलता जाएगा और बड़ी शीघ्रता से तुरन्त मिलता जाएगा। तेरे भजने वाले को सब भौतिक धन, उसकी पार्थिव (शारीरिक) आवश्यकताओं की पूर्ति के सब साधन शीघ्र ही मिल जाते हैं। उसे पाप के समूल नाश के लिए, पाप से लड़ने के लिए, जीवन-संघर्ष में विजयी होने के लिए जिस बल,तेज, सामर्थ्य की आवश्यकता है, वह भी ठीक समय पर मिल जाता है। इसके बाद उसे अन्तरिक्षलोक की वृष्टि, मानसिक लोक की दुर्लभ महान् सन्तुष्टि, आनन्द व तृप्ति प्राप्त हो जाती हैं और यह दिव्य वृष्टि ही नहीं, किन्तु इन दिव्य जलों की प्रेरक, इनको गति देनेवाली जो स्तुत्य दिव्य ज्योति है, वह आदित्य ज्योति भी अन्त में उन्हें मिल जाती है। इस प्रकार पार्थिव, आन्तरिक्ष और दिव्य एक-से-एक ऊँचे ऐष्वर्य, सम्पूर्ण ऐष्वर्य, एक तेरा ही सेवन करते जानेवाले को पूरी तरह मिल जाते हैं। फिर भी हम मुर्ख न जाने क्यों, एक तेरे ही सेवन में नहीं लगते, एक तुझ मूल का आश्रय नहीं पकड़ते।

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ओ३म् का झंडा 🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩
……………..ऊँचा रहे

🐚🐚🐚 वैदिक विनय से 🐚🐚🐚


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