Wednesday, December 16, 2015

—संस्कृती सबकी एक चिरंतन— संस्कृती सबकी एक चिरंतन संस्कृती सबकी एक चिरंतन खून रगों मे...

—संस्कृती सबकी एक चिरंतन—
संस्कृती सबकी एक चिरंतन
संस्कृती सबकी एक चिरंतन खून रगों मे हिंदु हैं
विराट सागर समाज अपना हम सब इसके बिंदू हैं

राम कृष्ण गौतम की धरती, महावीर का ज्ञान यहां
वाणी खंडन मंडन करती, शंकर चारों धाम यहां
जिसने दर्शन राहें उतनी, चिंतान का चैतन्य भरा
पंथ खालसा गुरू पुत्रों की बलिदानी यह पुण्य धरा
अक्षय वट अगणित शखाऐं, जड में जीवन हिंदु हैं……………।१

कोटी हृदय हैं भाव एक हैं, इसी भूमि पर जन्म लिए
मातृभूमि यह कर्मभूमि यह, पुण्यभूमि हित मरे जिये
हारे - जीते संघर्षों में, साथ लढे बलिदान हुए
कालचक्र की मजबूरी में रिश्ते नाते बिखार गये
एक बडा परिवार हमारा, पुरखे सब के हिंदु हैं………………।२

सबकी रक्षा धर्म करेगा, उसकी रक्षा आज करें
वर्ण - भेद मत - भेद मिटा कर नव रचना निर्माण करें
धर्म हमारा जग में अभिनव, अक्षय है अविनाशी हैं
इसी कडी से जुडे हुए, युग युग से भारतवासी हैं
थाय अथाह जहां की महिमा, गहरा जैसे सिंधु हैं……………।।३

हरिजन गिरिजनवासी बन के, नगर ग्राम सब साध चलें
उंच नीच का भाव घटा कर, समता के सद्‌भाव बढें
ऊपर दिखते भेद भले हों, जैसे वनमें में फूल खिले
रंग बिरंगी मुस्कानों से, जीवन रस पर एक मिले

संजीवनी रस अमृत पीकर, मृत्युंजय हम हिंदु है……………।४


from Tumblr http://ift.tt/1O5nZDC
via IFTTT

3 comments:

  1. मन मोहक
    अत्यंत सुन्दर कविता

    ReplyDelete
  2. बहुत सुन्दर पूर्णशिवा भाई की आवाज़.......

    ReplyDelete