२ पौष 16 दिसम्बर 2015
😶 “ हे वृषभ देव ! ” 🌞
🔥🔥 ओ३म् क्वस्य ते रूद्र मृळयाकुर्हस्तो यो अस्ति भेषजो जलाष: । 🔥🔥
🍃🍂 अपभर्ता रपसो दैव्यस्याभी नु मा वृषभ चक्षमीथा: ।। 🍂🍃
ऋक्० २ । ३३ । ७
ऋषि:- गृत्समद: ।। देवता- रूद्र: ।। छन्द:-त्रिष्टुप् ।।
शब्दार्थ- हे रूद्र! हे रोगनाशक!
तेरा वह सुखदायक हाथ कहाँ है, जो औषधमय और आनन्दजनक है जो देवसम्बन्धी पाप का, रोग का दूर करनेवाला है? हे सुखवर्षक! तू अब तो मुझे क्षमा कर, सहन कर।
विनय:- मैंने निःसन्देह बहुत अपराध किये हैं। उन्हीं का फल भोगता हुआ मैं आज इतना दुःखी हूँ, रोगग्रस्त हूँ, परन्तु हे रूद्र! मैं जानता हूँ कि तुम जहाँ ताड़ना करते हो, वहाँ प्रेम भी करते हो। तुम रूद्र हो, तो वृषभ भी हो। तुम कभी तुरन्त दण्ड देते हो, तो कभी क्षमा भी करते हो। तुम्हारा कठोर हाथ जहाँ हमारी ताड़ना करता है, वहाँ तुम्हारा करुणहस्त हम पर प्रेम भी दिखलाता है। मैं आज तुम्हारे उस भयदायक हस्त का तो अच्छी तरह अनुभव करता हूँ कि तुम्हारा वह दूसरा ‘मृळयाकु’ सुखदायक हस्त भी है जोकि कल्याणरूप होकर हमें शान्ति और सान्त्वना प्रदान करता है। मैंने अवश्य अपने देवों के प्रति अक्षम्य पाप किये हैं, किन्तु मैं दुःख भी बहुत भोग चुका हूँ। अब तो मैं दुर्बल अधिक ताड़ना नहीं सह सकता, इसलिए हे कामनाओं को पूरा करनेवाले! हे सुखवर्षक! तुम्हीं मुझे सहन करो, क्षमा करो। इन असह्य पीड़ाओं ने मुझे पाप की दुःखरूपता अनुभव करा दी है। इसलिए मैं अब सहनीय हूँ, तुम्हारी क्षमा का पात्र हूँ।तुम सच्चे वैद्य हो, तुम ही पूर्ण चिकित्सक हो। आह! तुम्हारा वह सुखदायक हस्त कहाँ है जो औषधमय है, जो आनन्दजनक है? मुझे तो अब अपने इसी हस्त का संस्पर्श कराओ। हे वृषभ! मुझे अब क्षमा करो और अपने इसी सुखहस्त का अनुभव कराओ।
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ओ३म् का झंडा 🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩
……………..ऊँचा रहे
🐚🐚🐚 वैदिक विनय से 🐚🐚🐚
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