२७ मार्गशीर्ष 12 दिसम्बर 2015
😶 “ त्रुटियाँ दूर हों ! ” 🌞
🔥🔥 ओ३म् यन्मे छिद्रं चक्षुषो हृदयस्य मनसो वातितृण्णं बृहस्पतिर्मे तद्य्धातु । 🔥🔥
🍃🍂 शं नो भवतु भुवनस्य यस्पति: ।। 🍂🍃
यजु:० ३६ । २
ऋषि:- दध्यङ्ङाथर्वण: ।। देवता- बृहस्पति: ।। छन्द:- निचृत्पक्त्ङि: ।।
शब्दार्थ- मेरे आँख की, बाह्येन्द्रियों का जो छिद्र, दोष, न्यूनता है और हृदय का, बुद्धि का अथवा मन का जो गहरा घाव है मेरे उस छिद्र, घाव को बृहत् संसार का ज्ञानमय पालक परमेश्वर ठीक कर देवें। जो जगत् का स्वामी है वह हमारे लिए कल्याणकारी होवे।
विनय:- मैंने जो अपनी दृष्टि फेरी है, अपने को टटोला है तो मैं देखता हूँ कि मुझमें त्रुटियाँ-ही-त्रुटियाँ हैं, मैं दोषों से भरा हुआ हूँ।जबतक मैंने अपने को नहीं देखा था, तबतक मैं भी अन्य संसारी लोगों की भाँति व्यर्थ में औरों को बुरा-भला कहता हुआ सन्तुष्ट फिरता था, पर आज आत्मनिरीक्षण करने पर अपनी आँख आदि इन्द्रियों की रोग-अशक्ति आदि विकलताओं को तथा इनकी प्रसिद्ध सदोषताओं को तो मैं अनुभव करता ही हूँ, किन्तु जब मैं अपने अन्दर अधिक घुसता हूँ और अपने मन के तथा हृदय के जख्मों को, गहरे घावों को देखता हूँ तो मैं घबरा जाता हूँ। ओह! मेरा मन कितना मलिन है, कितना दुर्बल है। मेरी बुद्धि कितनी विकृत है। अपने इन अन्दर के करणों की इस भयंकर दुर्दशा को, इन भयंकर कमियाँ कभी ठीक भी हो सकती हैं या नहीं? इसलिए हे बृहस्पते! ज्ञानपते! तुम ही कृपा करो कि मेरी इन न्यूनताओं को, मेरे इन जख्मों को शीघ्र भर दो।हे ज्ञानपते! तुम अब मेरी सब हीनताओं को पूरा कर दो। मेरे ही लिए नहीं किन्तु हम सब, मनुष्यमात्र के लिए कल्याणकारी होओ। तुम सबके धारण करनेवाले हो। सब बिगडों को बनानेवाले हो। मैं अपने-आप में तो सर्वथा अशक्त हूँ, कुछ भी नहीं कर सकता हूँ। तुम्हीं, हे बृहस्पते! जब मेरी सब त्रुटियों को भर दोगे, मेरी सब न्यूनताओं को पूर दोगे, तभी मैं पूर्ण पुरुष बन सकूँगा।
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ओ३म् का झंडा 🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩
……………..ऊँचा रहे
🐚🐚🐚 वैदिक विनय से 🐚🐚🐚
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