Sunday, December 13, 2015

⭐ देव दयानन्द की दया ! ⭐ प्रस्तुति:- आर्य लक्ष्मण 13 दिसम्बर 2015 युगों युगों के बाद...

⭐ देव दयानन्द की दया ! ⭐
प्रस्तुति:- आर्य लक्ष्मण 13 दिसम्बर 2015
युगों युगों के बाद ईश्वर की असीम दया से महर्षि दयानन्द का जन्म इस पूण्य-पावनि भारत- भूमि में हुआ । उन्होंने 15 घण्टे के समाधि सुख को छोड़कर अपने मोक्षानन्द को निछावर करके हमे हमारे भूले हुए आत्म-गौरव और भूले हुए वेद पथ को स्मरण कराया ।
स्वामी जी ने वेद ज्ञान से प्राप्त दिव्यद्रस्ति से यह सब देखा और बड़े दुखी ह्रदय से उन्होंने इस सारे पाप-ताप को ललकारा । उन्होंने फिर से वेदों की राह पर लौटने की आवाज दी, जिस पर चलकर भारत फिरसे जगद्गुरु बन सके और एक वैदिक ईश्वर की उपासना द्वारा सारा संसार स्वर्गधाम बन जाए । ऋषी ने हमे भूली हुई वैदिक राह फिर से बताई और कहा –
आर्य हमारा नाम हे , वेद हमारा धर्म ।
ओ३म् हमारा देव हे , सत्य हमारा कर्म ।।

ऋषि दयानन्द चाहते थे की बिच के जमानेकी विकृतियों , मत मतांतरों और पंथो को छोड़कर फिर सारा संसार श्री राम के जमाने की तरह वेद की राह पर आये । फिर एक बार संसार के सभी श्रेष्ठ सदाचारी( आर्य ) मनुष्य श्री राम की भाँति एक ही ईश्वर के उपासक हों । ऋषि की आँखे वह दिन देखना चाहती थी , जब फिर यहाँ राम - भरत से भाई , सीता सी देवियां , कौशल्या और सुमित्रा सी माताये , दशरथ जैसे पिता , राम जैसे पुत्र , मुनिवर वशिष्ठ से कुलगुरु , महामुनि विस्वामित्र और महर्षि अगत्स्य जैसे शिक्षक , सुग्रीव जैसे मित्र और हनुमान जैसे सेवक हों , जिससे हमारा भारत फिर महान भारत बन जगद्गुरु और विश्वसम्रात का गौरव प्राप्त कर सके । सारा संसार जिस की शीतल छाँव में सुख सांति का अनुभव कर लौकिक और पारलौकिक उन्नति के समन्वय रूप धर्म का पालन कर फिर वैदिक धर्म और मानवता का जय जय गान कर सके ।
यह स्वप्न कैसे साकार हो , इसके लिए उस युगद्रष्टा ऋषि ने इस महान आर्य जाती और आर्यावर्त के शिखर से गिरकर रसातल में पहुचने जैसे घोर पतन के मूल कारणों पर घहराइ से चिंतन किया । और तब कवी के शब्दों में उनसे यह सच्चाई छिपी नही रही की - “ सब दुःखो का मूल हे ईश्वर जुदाई आपकी ”– एक वैदिक ईश्वर की जगह अनेक कल्पित देवी देवताओ की पूजा , गुरुडम और विविध मत - पंथो का पाखण्ड ही हमारी दीनता , दरिद्रता और पराधीनता कामुल कारण हे इसे ऋषि ने देखा । उन्होंने पहचाना की महा पतन का असली कारण हे - मेरे महान पूर्वज राम - कृष्ण को ईश्वर अथवा उपन्यास का कल्पित पात्र बनाकर मुझसे छीन लिया गया हे और इस प्रकार मेरी प्रेरणा का स्रोत सुखा डाला गया हे । बहु देवता वाद अवतार वाद चमत्कार वाद और अलंकारवाद की छाया में हमने अपने राम - लक्ष्मण , भारत, सत्रुघ्न महावीर हनुमान और माता सीता के चरित्र की पूजा की जगह चित्र पूजा का पाखण्ड अपनाकर अपने सर्वनाश को स्वयम आमन्त्रित किया हे इसी पाखण्ड के खण्डन के लिए ही ऋषि ने जाती - उद्धार देशोद्धार और विश्व कल्याण की पवित्र भावना से बड़े दर्द भरे दिल से पाखण्ड - खंडिनी पताका को उठाया । उस महान संत ने इस कठोर कर्तव्य को बड़ी पीड़ा और करुणामयता से निभाया हे । इति ओ३म्
नमस्ते मित्रो


from Tumblr http://ift.tt/1O2RPin
via IFTTT

No comments:

Post a Comment