जैसे ज्ञान बांटने से बढ़ता है वैसे ही योग विद्या भी बांटने से बढती है इसलिए योगियों को चाहिए की योग विद्या का प्रचार करें और अन्यों का भी शारीरिक और आत्मबल से उन्नत करें
यजुर्वेद ॥७-१४॥
अच्छि॑न्नस्य ते देव सोम सु॒वीर्य॑स्य रा॒यस्पोष॑स्य ददि॒तारः॑ स्याम । सा प्र॑थ॒मा सँस्कृ॑तिर्वि॒श्ववा॑रा॒ स प्र॑थ॒मो वरु॑णो मि॒त्रो अ॒ग्निः ॥
भावार्थ:- योगविद्या मे सम्पन्न शुद्धचित युक्त योगियों को योग्य है कि जिज्ञासुओं के लिये नित्य योगविद्या का दान देकर उन्हें शारीरिक और आत्मबल से युक्त किया करें।।
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