Wednesday, July 8, 2015

आषाढ़ कृ.८ 9 जुलाई 15 😶 “अकेले मत भोगो! ” 🌞 ओ३म् मोघमन्नं विन्दते अप्रचेता: सत्यं...

आषाढ़ कृ.८ 9 जुलाई 15

😶 “अकेले मत भोगो! ” 🌞

ओ३म् मोघमन्नं विन्दते अप्रचेता: सत्यं ब्रवीमि वध इत् स तस्य। नार्यमणं पुष्यति नो सखायं केवलाघो भवति केवलादी ।। 
ऋ० १० । ११७ । ६ 
शब्दार्थ :- दुर्बुद्धि मनुष्य व्यर्थ ही भोग-सामग्री को पाता है।सच कहता हूँ कि वह भोग-सामग्री उस मनुष्य के लिए मृत्युरूप ही होती है-उसका नाश करने वाली ही होती है। ऐसा दुर्बुद्धि न तो यज्ञ द्वारा अर्यमादि देवों की पुष्टि करता है और न ही मनुष्य-साथियों की पुष्टि करता है। सचमुच वह अकेला खाने-भोग करनेवाला मनुष्य केवल पाप को ही भोगने वाला होता है।

विनय:- हे इंद्र !
संसार में धनी दिखने वाले दुर्बुद्धि (पापबुद्धि) मनुष्य के पास जो अन्न-भंडार और नाना भोग-सामग्री दिखाई देती है, क्या वह भोग-सामग्री है? अरे,वह सब भोग-विलास का सामान तो उनकी ‘मौत’ है। वे भोग-वस्तुऍ नहीं हैं, किन्तु उनको खा जाने वाले ये इतने उनके भोक्ता हैं, भक्षक हैं। 
हे मनुष्य!
तुम्हे इस विचित्र बात पर विशवास नहीं होता होगा, किन्तु मैं सच कहता हूँ, सच कहता हूँ और फिर सच कहता हूँ कि पापी, दुर्बुद्धि पुरुष के पास एकत्र हुआ सब सांसारिक भोग का सामान उसकी मृत्यु का सामान है, इसमें ज़रा भी संदेह नहीं है, क्यूंकि वह पुरुष अपने इस धन-ऐश्वर्य द्वारा केवल अपने देह को ही पोषित करता है। न तो वह उस द्वारा अपने अन्य मनुष्य-भाइयों को पोषित करके अपने स्वाभाविक यज्ञ-धर्म को पालता है, न ही वह अर्यमादि देवों के लिए आहुति देकर आधिदैविक आदि जगत् के साथ अपना सम्बन्ध स्थापित रखता है। मनुष्यों! याद रखो कि अकेला भोगनेवाला, औरों को बिना खिलाये स्वयमेव अकेला भोगने वाला मनुष्य, केवल पाप को ही भोगता है। जबकि चारों ओर असंख्य पुरुष एक समय भी भरपेट भोजन न पा सकने वाले, भूखे-नंगे, झोपड़ों में पड़े हों तो उनके बीच में जो हलुवा-पूरी खाने वाला, महल में रहने वाला, पलंग पर सोने वाला 'अप्रचेता:’ पुरुष है उससे तुम क्यों ईर्ष्या करते हो? तुम्हें बेशक वह मज़े में हलुवा-पूरी खाता हुआ नज़र आता है, पर ज़रा सूक्ष्मता से देखो तो वह बेचारा तो केवल अपने पाप को भोग रहा होता है, वह केवल शुद्ध पाप का भागी होता है और इस अयज्ञ के भारी पाप-बोझ को वह अकेला ही उठाता है; इसमें उसका कोई और साथी नहीं होता। “केवलाघो भवति केवलादि” यह संसार का परम सत्य है। इसे कभी मत भूलो! (शरीर, मन और आत्मा तीनों को पुष्ट करनेवाले) सच्चे भोजन में और(शीघ्र ही विनाश को पहुँचा देने वाले) पापमय भोजन में भेद करो! पाप से सना हुआ हलुवा-पूरी खाने की अपेक्षा रुखा-सुखा खाना या भूखा रहना हज़ारों गुणा श्रेष्ठ है।। पहले प्रकार का भोजन मौत है; दूसरा अमृत है।

ओ३म् का झंडा 🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩
……………..ऊँचा रहे

 वैदिक विनय से


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