Thursday, July 2, 2015

“आज का...

“आज का सुविचार”
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संस्कार के तीन चरण हैं.. दोषमार्जन, हीनांगपूर्ती और अतिशयाधान..!! इन चरणों का सम्बन्ध वैदिक संध्या में आए तीन सूक्त क्रमशः अघमर्षण, मनसा-परिक्रमण और उपस्थान के साथ है.. अर्थात् वैदिक संध्या के माध्यम से व्यक्ति खुद का खुद दो बार दिन में संस्कार कर सकता है..!!
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“विवेकी व्यक्ति के लिए संसार दुःखों की भरमार होने से सर्वथा त्याज्य है” -यह कथन अर्ध-सत्य है.. आसक्तीपूर्ण भोग जरूर दुःखदायी है.. अनासक्त भोग का विधान जहां स्वयं विधाता वेद के माध्यम से करते हैं, वहीं मोक्षाधिकारी ‘कृतार्थ’ योगी के लिए भी संसार की उपादेयता ऋषियों ने बतायी है..!!
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अपरिग्रह और सन्तोष का पालन करने वाला साधना पथ का पथिक लौकिक सम्पन्नता के लिए कभी भी सत्य-धर्म-न्याय की उपेक्षा नहीं कर सकता.. जबकि साधनाविहीन व्यक्ति मौका पाते ही असत्य-अधर्म-अन्याय की ओर झुक जाएगा..!!
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जैसे धनवान शब्द का अर्थ है, धनवाला। बलवान शब्द का अर्थ है, बलवाला. इसी प्रकार से भगवान शब्द का अर्थ है भगवाला.एक शब्द कोष में भग शब्द के ६ अर्थ लिखे हुए हैं. १- ऐश्वर्य, २- तेज, ३- यश, ४- श्रीः=शोभा, ५- ज्ञान और ६- वैराग्य. जिस व्यक्ति के पास ये ६ चीज़ें हों, वह भगवान कहलायेगा. यदि ये ६ चीज़ें श्री राम जी के पास हैं, यही ६ चीज़ें श्री कृष्ण जी के पास हैं, तो उन्हें भगवान कह सकते हैं. परन्तु इतना होने पर भी उन्हें हम परमात्मा नहीं मानेंगे. क्योंकि परमात्मा तो एक ही है. जो सर्वव्यापक, सर्वशक्तिमान, सृष्टिकर्ता है. उसके पास भी ये ६ चीज़ें हैं, इसलिये उसे भी भगवान कह सकते हैं. इस प्रकार से भगवान शब्द दोनों=(जीव और ईश्वर) के लिये प्रयुक्त हो सकता है. जबकि परमात्मा शब्द केवल एक के लिये ही प्रयुक्त हो सकता हैै
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मित्रों, एक बार महामति चाणक्य जी से किसी ने प्रश्न किया कि संसार में कौन व्यक्ति खुश रह सकता है तब महात्मा चाणक्य जी ने जवाब दिया कि जिस व्यक्ति के जीवन में धर्म है वही व्यक्ति खुश हैं अब प्रश्न उठता है कि धर्म क्या है और हम धर्म का निर्धारण कैसे करें तो विद्वानों ने बताया है कि हम धर्म का निर्धारण चार प्रकार से कर सकते हैं पहला वेदों के आधार पर, क्योंकि वेद ईश्वर की वाणी है महर्षि गुरुवर देव दयानंद सरस्वती जी ने भी कहा कि वेद सभी सत्य विद्याओं की पुस्तक है हमें वेदों के आधार पर धर्म का निर्धारण करना चाहिए।

अब अगर कोई वेदों का ज्ञानी नहीं है तो दूसरा उपाय है स्मृतियों के आधार पर, जो ॠषि मुनियों कृत स्मृतियाँ है उनके आधार पर हमें धर्म का निर्धारण करना चाहिए जैसे कि मनुस्मृति में महाराज मनु ने हमें धर्म के 10 लक्ष्ण बताये हैं (धैर्य, क्षमा, सत्य, अस्तेय, अपरिग्रह, शौच, तप, स्वाध्याय, ब्रह्मचर्य, ईश्वर प्रणिधान) इनके आधार पर धर्म का निर्धारण करना चाहिए। अगर कोई स्मृति का ज्ञान भी नहीं रखता तो उसे आप्त पुरूषों, योगी पुरुषों के जीवन चरित्र से प्रेरणा लेकर धर्म का निर्धारण करना चाहिए और,
अगर कोई व्यक्ति बिल्कुल अनपढ़ है और अज्ञानी है तो उसे अपने लिए जैसा आचरण वह दूसरों से चाहता है तो दूसरों के साथ भी ऐसा ही व्यवहार करे यही धर्म है

वॉटस्एप:-साभार


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