Monday, July 27, 2015

अग्नि के छ: गुण– अग्नि मे छ: गुण है!पहला ,इसकी गति सदा ऊपर की ओर होगी,निम्न दिशाओ मे कभी...

अग्नि के छ: गुण–
अग्नि मे छ: गुण है!पहला ,इसकी गति सदा ऊपर की ओर होगी,निम्न दिशाओ मे कभी नही!दूसरा,अग्नि के साथ प्रकाश का अविछेद संबंध है!तीसरा,अग्नि मे उषनता है!प्राणधारी शरीर मे जब तक अग्नि की उषनता उचित मात्रा मे रहती है,वह जीवित रहता है,जिस समय मंद होती है,शरीर ठंडा हो जाता है!चौथा,अग्नि प्रसाडर और विस्तारशील है!जब अग्नि प्रज्वलित होगी,तो वायु मे गति और कम्पन आ जायेगा!इसलिए,प्रचन्ड अग्नि-कान्ड़ होने पर आन्धी चलनी शुरू हो जाती है!पांचवा,अग्नि सर्व ग्राही है!इसमे जो कुछ भी डालो,सब भस्म कर डालती है!प्लेग इत्यादि रोगो के किटानु नष्ट करने के लिये अग्नि सर्वोत्तम साधन है!छठा,अग्नि के साथ संयोग होने से अल्प वस्तु मे भी शक्ति का समावेश हो जाता है!एक लाल मिर्च को अग्नि मे डाल दो,तो दूर तक बैठे लोगो को भी खाँसी आनी शुरू हो जाएगी!इसीलिए,अग्नि मे डाला गया थोडा-सा घी भी दूर तक रोगनाशक,दुर्गन्ध-निवारक और सुगंध-प्रसारक हो जाता है!
अग्निहोत्र द्वारा यजमान मे नवजीवन—

अग्नि कुंड सम्मुख बैठे यजमान और अन्य उपस्थित व्यक्तियो को अग्नि से ये छ: शिक्षाए लेनी चाहिए!पहली ,वे जीवन मेसदा ऊपरकी ओर बढने वाले हो!दूसरी,उनका जीवन ज्यान व भक्ति से प्रकाशित हो!तीसरी,उनके जीवन मे तेजस्विता हो,उनके ओज के सम्मुख पाप कभी ठहर न सके!चौथी,वे अपने चारो ओर संसार मे सद्गुणो का विस्तार करनेवालेहो! पांचवी,वे सब ओर श्रेषठ विचारो और गुणो को अपने मे समा लेनेवाले हो,और छठी शिक्षा यजमान और यजवेदी पर उपस्थित अन्य व्यक्ति यह ले कि साथ संयोग होने से जिस प्रकार स्वस्थ वस्तु भी सशक्त हो जाती है,उसी प्रकार उनमे इतना आत्मबल हो की वे अपना सम्पर्क मे आनेवाले किसी भी व्यक्ति को धार्मिक और सयनिषठ बना सके!


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