Thursday, July 9, 2015

दीर्घजीवन का एक उपाय संगीत व वेदगान - पण्डित रघुनन्दन...

दीर्घजीवन का एक उपाय संगीत व वेदगान

- पण्डित रघुनन्दन शर्मा
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“संगीत के सदृश चित्त को प्रसन्न करनेवाली और कोई वस्तु संसार में नहीं है और न प्रसन्नता के समान - आनन्द के समान - जीवनदान देनेवाली कोई औषधि भी है ।

अतएव दीर्घजीवन देनेवाले संगीत का अभ्यास करना प्रत्येक मनुष्य का कर्तव्य है ।

आर्यों ने अपने प्रत्येक कार्य में जो वेदों के सस्वर पाठ का क्रम रखा है, उसका यही कारण है ।

आर्य लोग दिन भर किसी न किसी वैदिक यज्ञ के अनुष्ठान में रहते थे और कोई न कोई वेदमन्त्र गाया ही करते थे ।

परन्तु आजकल विद्वानों ने स्वर-ज्ञान को खो दिया है, इसलिए वेदों का पाठ इतना आनन्द नहीं देता जितना संगीत के साथ देता था ।

इसलिए दीर्घजीवन चाहनेवाले प्रत्येक आर्य को उचित है कि वह परमात्मा की स्तुति, प्रार्थना और उपासना से सम्बन्ध रखनेवाले वेदमन्त्रों को सदैव स्वरों के साथ कायदे से (अर्थात् स्वरविज्ञान के नियम अनुसार) गाने का अभ्यास करे ।

वैदिक ज्ञान से हृदय को आनन्द और मस्तिष्क को उच्च ज्ञान प्राप्त होगा, जिससे उसको अपने समस्त कामों को नियमपूर्वक करने की सूचना मिलती रहेगी और वह दीर्घजीवन के उपायों से कभी विचलित न होगा ।”


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