Thursday, July 2, 2015

यह सत्य है कि पांच हजार वर्ष पूर्व कोई भी मत मतान्तर न था,केवल एक वेद मत ही था और एक ही इश्वर की...

यह सत्य है कि पांच हजार वर्ष पूर्व कोई भी मत मतान्तर न था,केवल एक वेद मत ही था
और एक ही इश्वर की उपासना होती थी |लेकिन महाभारत का जो युद्ध हुआ उसने दुनिया की बहुत हानि की |बड़े बड़े योद्धा और विद्वान इस युद्ध में मारे गये |जब विद्वान न रहे तब जिसको थोडा बहुत ज्ञान थाउनकी बन पड़ी और शास्त्रों के मन चाहे अर्थ करके अपने स्वार्थ सिद्ध करने लगे |समय बीतते बीतते सभी ने अपने अलग अलग मत बना लिए |सभी ने स्वयं को स्वयम्भू अवतार और स्वयंभू गुरु बताना आरम्भ कर दिया |
जो श्लोक सदाचारी और निस्वार्थ गुरुओ के लिए थे 
वे अपने ऊपर गढ लिए ,
किसी ने शिवजी के नाम से अपनी दूकान चलाई तो किसी ने ब्रह्मा जी के नाम से अपनी दूकान चलाई |इसी अविद्या और मत मतान्तरों के कारण यह भारत देश विदेशी आक्रंताओ के अधीन हो गया |इन्हीं विदेशी आक्रंताओ के अधीन रहते हुए कई व्यक्तियों ने समाज में सुधार की कोशिश की लेकिन सुधार होने की वजाए उनके शिष्यों ने उनके ही नाम से अलग अलग पंथ बना डाले जैसे कबीर पन्थ ,
दादू पन्थ इत्यादि | कबीर दास जो जीवन पर्यन्त परमात्मा की भक्ति करते रहे उनके तथाकथित शिष्यों ने उन्हें ही पूर्ण परमात्मा बना डाला
और उनके नाम से अपनी दुकानें चलाना आरम्भ कर दिया |आज विश्व में हजारों तथाकथित गुरु हैं जो अपने को पूर्ण गुरु और साक्षात अवतार बताते हैं|
स्मरण रहे महर्षि दयानंद जैसे अष्टाध्यायीव्याकरण,निरुक्त,निघण्टु के विद्वान व योगी पुरुष ही वेद मंत्रों का ठीक ठीक अर्थ कर सकते हैं|सायणाचार्य महीधर व मैक्समूलर आदि अनाडी लोगों ने वेद मंत्रों के अर्थ का अनर्थ करके लोगों को बहुत भ्रमित किया है |वेदों पर आधारित वैदिक धर्म ही शाश्वत,सर्वागींण, ईश्वर प्रदत्त और पूर्णतया वैज्ञानिक है|
यज्ञ,योग व वेद को अपना कर ही मनुष्य जीवन सफल हो सकता है |


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