आज का सुविचार (13 दिसम्बर 2015, शनिवार, पौष शुक्ल २)
नेति नेति- यह नहीं है, यह नहीं है। यह वास्तविक स्थिति नहीं है। यह दूसरी भी वास्तविक स्थिति नहीं है। “नेति नेति” क्षमता के स्तर का महान चिन्तन है। एक थे मिस्टर जैकब अतिरिक्त मुख्य अभियन्ता। एक दिन मुझसे बोले- पांच साल और एक दिन। मैंने कहा- मैं समझा नहीं। वे बोले- अब मेरी नौकरी के पांच साल एक दिन भर बचे हैं। और इसी तरह वे रोज एक-एक दिन गिनते। वे अक्षमता के स्तर पर बुरी तरह लड़खड़ा रहे थे। श्री प्रकाश डी.जी.एम. इनके भी गुरु थे। उन्होने दरवाजे के पीछे पूरा बाकी दिनों का केलेंडर बना रखा था और एक-एक दिन काटते जीते थे। हर दिन वे सेवा निवृत्ति के नजदीक पहुंचते रहे। ये दिन गिनना तो ऐसा है मानों सेवा निवृत्ति दिवस न हुआ वह मृत्यु दिवस हुआ। हर नौकरीपेशा एकाध अपवाद छोड़ सेवानिवृत्ति प्रभावित होता है। कोई-कोई तो बिलकुल पागलवत व्यवहार करता है। मैं विभिन्न व्यवहारों का चश्मदीद गवाह हूं। (~स्व.डॉ.त्रिलोकीनाथ जी क्षत्रिय)
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