२९ मार्गशीर्ष 14 दिसम्बर 2015
😶 “आत्मा पवित्र है ! ” 🌞
🔥🔥 ओ३म् अरण्योर्निहितो जातवेदा गर्भइव सुधितो गर्भिणीषु ।
दिवेदिव ईड़यो जागृवद्धिर्हविष्मद्विर्मनुष्येभिरग्रि: । 🔥🔥
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-ऋक० ३ ।२९ ।२ ; साम० पू० १ । २ । ८ ।७
ऋषि:- विश्वामित्र: ।। देवता- अग्रि: ।। छन्द:- त्रिष्टुप् ।।
शब्दार्थ- ज्ञान व ऐष्वर्यवाला अग्रि अरणियों में छिपा हुआ होता है और यह वहाँ गर्भिणियों में गर्भ की भाँति अच्छी प्रकार धारित,सुरक्षित होता है । यह अग्रिदेव जागनेवाले,ज्ञानयुक्त हविवाले,आत्मत्यागी मनुष्यों द्वारा तो प्रतिदिन ही पूजित व प्रार्थित होता है ।
विनय:- तुम कहते हो कि आत्मा दिखाई नहीं देता,पर यदि तुम इसे देखना चाहते हो तो तुम इस आत्माग्रि को प्रज्वलित क्यों नहीं कर लेते? अरणि में या दियासलाई में विद्यमान भौतिक अग्रि भी तो तबतक दिखलाई नहीं देता जबतक कि मन्थन(रगड़ने) द्वारा उसे प्रज्वलित नहीं कर दिया जाता । तुम जरा स्वात्म-रुपी दियासलाई या अरणि से प्रणव (ईश्वर नाम) रुपी(दियासलाई की) डिब्बी या उत्तरारणि पर ध्यानरूपी मन्थन करके देखो,तो तुम देखोगे कि तुम्हारा आत्माग्रि चमक उठेगा, जातवेदा जाग उठेगा ।
अरे !
योगरूपी अरणी और स्वाध्यायरुपी उत्तरारणि के सम्बन्ध से तो अन्त:करण में परमात्मा तक प्रकाशित हो जाता है । यह ठीक है कि प्रारम्भ में यह आत्मज्योति एक चिनगारी के रूप में प्रकट होती है,अतएव इस आत्मज्योति की इस समय इतनी अच्छी तरह रक्षा करनी चाहिए,जैसेकि गर्भिणी स्त्री अपने गर्भ की रक्षा करती है,पर क्या हम अपने इस ज्ञानगर्भ की रक्षा करते हैं? नहीं, यह सब हम न जानते हुए बड़े भारी गर्भपात के पापभागी हो रहे हैं । जैसे माता-पितारूपि अरणियों से प्रकट हुई सन्तानरूपी अग्रि प्रारम्भ में गर्भावस्था में होती है,वैसे ही हम सब मनुष्य-शरीर पानेवालों के अन्दर जन्म से आत्मज्योति गर्भित रहती है, जोकि हममें जीव के मनुष्य-योनि-सम्बन्ध से उत्पत्र हुई है,पर हम लोग इस गर्भित ‘सुधित’ ज्योति को पालित-पोषति कर बढ़ाने की जगह भोगादि में पड़कर इसे दबादेते हैं, इस सुरक्षित गर्भ को विनष्ट कर देते हैं। संसार के महात्माओं को देखो, इन्होंने इसी प्रकार अपने में जातवेदा की चिनगारी को इतना बढ़ाया है कि वे आज सब कुछ भस्म कर सकने वाले महानल हो गये हैं, महाशक्ति, महात्मा हो गये हैं। ये देखो! हविष्मान् मनुष्य अपनी इस प्रज्वलित आत्माग्रि का प्रतिदिन भजन-स्तवन कर रहे हैं,इसे और-और बढ़ा रहे हैं । इनके अन्दर ये आत्मदेव निरन्तर ज्ञानों और बलिदानों द्वारा पूजित और पोषित हो रहे हैं,
उठो मनुष्यों !
तुम भी अपनी आत्माग्रि को बढ़ाओ और जाग्रत् होकर तथा हवि हाथ में लेकर इस आत्माग्रि को नित्य अधिक-से-अधिक प्रदीप्त करते जाओ ।
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ओ३म् का झंडा 🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩
……………..ऊँचा रहे
🐚🐚🐚 वैदिक विनय से 🐚🐚🐚
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