● एक स्मरणीय घटना●
स्वामी दयानन्द की अद्भुत मेधाशक्ति
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लेखक : आचार्य श्री विश्वश्रवाः जी व्यास
(द्रष्टव्य : ‘आर्य-सन्देश’ साप्ताहिक के 27 अप्रैल 1986 के अंक में पृष्ठ 6 पर प्रकाशित आचार्य श्री विश्वश्रवाः व्यास का लेख । प्रस्तुति – भावेश मेरजा, 12दिसम्बर 2015)
“हमारे नगर में हमारे मकान के पास पौराणिक पण्डित देवदत्त शर्मा रहते थे । लगभग सौ वर्ष उनकी आयु थी । हमारा बाल्यकाल था । उन्होंने हमें सुनाया कि बरेली में स्वामी दयानन्द आये । यहां के प्रसिद्ध विद्वान् अंगद शास्त्री से उनका शास्त्रार्थ तय हुआ । शास्त्रार्थ स्थल पर अंगद शास्त्री पचास प्रश्न लिखकर लाए और गर्व के साथ बोले कि – ‘दयानन्द आज तुम्हारा पाला अंगद शास्त्री से पड़ा है । मैं पचास प्रश्न लाया हूं, तुम जवाब नहीं दे सकोगे ।’ स्वामी जी ने कहा कि – ‘अंगद शास्त्री, सब प्रश्न सुना दो; मैं इकट्ठे जवाब दे दूंगा ।’ अंगद शास्त्री के हाथ में एक कागज था जिसमें पचास प्रश्न लिखे थे । पढ़कर सुना दिए । स्वामी जी हंसकर बोले – ‘अंगद शास्त्री, ये प्रश्न तुम्हारे हैं या किसी से लिखवाकर लाए हो ?’ वह तड़पकर बोला – ‘मैं पण्डित हूं, ये मेरे प्रश्न हैं ।’ स्वामी जी ने कहा कि – ‘यदि ये प्रश्न तुम्हारे हैं तो कागज नीचे रख दो और बिना देखे अपने पचास प्रश्न सुनाओ ।’ तब अंगद शास्त्री बोला – ‘बिना कागज देखे मैं नहीं बोल सकता ।’ स्वामी जी ने कहा – ‘तभी तो मैंने कहा कि किसी से लिखवाकर लाए हो ।’ स्वामी जी फिर बोले – ‘अंगद शास्त्री, अपना कागज अपने हाथ में उठाओ । पहले मैं तुम्हारे पचासों प्रश्न बोलता हूं, फिर उनके उत्तर दूंगा ।’ स्वामी जी ने पचासों प्रश्न उसी क्रम से सुना दिए जिस क्रम से लिखे थे और अंगद शास्त्री ने बोले थे । अंगद शास्त्री चकित होकर बोला – ‘स्वामी दयानन्द, आप मनुष्य नहीं, कोई देवता (= दिव्य गुण व सामर्थ्य युक्त मनुष्य) हो, मैं आपसे शास्त्रार्थ नहीं कर सकता ।’ देवदत्त शर्मा ने सुनाया कि – ‘मैं उस शास्त्रार्थ में स्वयं उपस्थित था ।”
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