ओ३म्
साप्ताहिक वैदिक विचार-3
जीवन का प्रमुख उद्देश्य
इस सृष्टि में मनुष्य सबसे बुद्धिमान् प्राणी है। आज दुःखद आश्चर्य यह है कि यह बुद्धिमान कहाने वाला प्राणी मनुष्य बुद्धि, विवेक के अनुसार नहीं बल्कि स्वेच्छाचारिणी इन्द्रियों के अनुसार जी रहा है। वस्तुतः जो प्राणी सत्यासत्य विवेक से कार्य करने में समर्थ होता है, उसे मनुष्य ही कहा जाता है। फिर वह चाहे इस पृथ्वी पर रहने वाला हो अथवा अन्य किसी लोक का निवासी। परमात्मा ने जीवात्मा को सम्पूर्ण सृष्टि भोग व अपवर्ग के लिए ही प्रदान की है। इसका विवेक सम्मत त्यागपूर्वक भोग ही अपवर्ग को प्राप्त करने का एक साधन है। अपवर्ग (मोक्ष) ही आत्मा का प्रमुख उद्देश्य है, जो केवल मनुष्य शरीर के द्वारा ही सम्भव है। पशु-पक्षी आदि सभी प्राणी इस योग्य नहीं बल्कि वे केवल भोग तक सीमित हैं। यदि मनुष्य भी केवल भोग तक सीमित रहे तो वह पशु के ही समान हो जायेगा। जो मनुष्य अभक्ष्य पदार्थों का भक्षण करते तथा प्रकृति के विरुद्ध स्वेच्छाचार, दुराचार आदि में रत रहते वे पशु से भी निम्न कोटि के प्राणी हैं। वस्तुतः वे अपनी बुद्धि, विवेक, विज्ञान का दुरुपयोग करके मानव जीवन को निरर्थक बनाकर अपने लोक व परलोक को नष्ट करने में लगे हैं। मनुष्य जब सृष्टि विज्ञान की गहराइयों में जाकर सूक्ष्माति सूक्ष्म पदार्थों के चिन्तन करते हुए द्रव्य, ऊर्जा, आकाश आदि के कारण रूप, प्राण, मन व आत्मा परमात्मा का विवेचन करेगा, तब उसे यह बोध अवश्य होगा कि मनुष्य जीवन का उद्देश्य केवल भोग नहीं बल्कि मोक्ष है। विवेक सम्मत भोग साधन अवश्य है परन्तु साध्य कदापि नहीं। पदार्थ विज्ञान की गहराई अध्यात्म विज्ञान के द्वार खोलती है और अध्यात्म विज्ञान आत्मा के उद्देष्य व कर्मों की यथार्थ विवेचना करता है। ईश्वर, आत्मा व सृष्टि का सम्पूर्ण व यथार्थ ज्ञान तथा पूर्ण निष्काम परोपकार के कार्य ही मोक्ष के एकमात्र साधन हंै। महर्षि पतंजलि प्रणीत अष्टांग योग ही इस साधन का क्रमिक व विशुद्ध वैज्ञानिक वर्णन करता है। भोग की प्रवृत्ति संसार में संघर्ष, हिंसा, वैर, विरोध, दुःख व अशान्ति को उत्पन्न करती है और मोक्ष की प्रवृत्ति संसार में सद्भाव, प्रेम, करुणा, सत्य, आनन्द व शान्ति का साम्राज्य स्थापित करती है। अब बुद्धिमान् मनुष्य स्वयं विचारे कि उसे क्या करना चाहिए?
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