आर्य समाज गंगा को माँ कहता है और पौराणिक भी गंगा को माँ कहता है,
आर्य समाज किसी जड़ को माँ कहे जाने का अर्थ उसके गुणों के कारण लेता है पर पौराणिक समाज अज्ञानता के कारण माँ का अर्थ हाथ पैरो वाला लेता है चेतन मानता है उसकी वैसे ही मूर्ति बनाकर पूजता है ,
आर्य समाज वेद मार्ग पर चलता है, पौराणिक समाज वेद मार्ग से भटक चुका इसलिए ये अटक चुका है ।
आर्य समाज गंगा को ही नहीं हर उस जल को माँ कहता हैं या कहेगा जिसमें “ भेषजीय” अर्थात औषधीय गुण हो ।
इसमें वेद का प्रमाण है –
वेद ने कहा “ आपोऽअसमान्मातर: शुन्धयन्तु ” यजु: 4/2
अर्थात् जल हमारी माताओं के तुल्य है। ये हमको शुद्ध करता है ।
अब ये शुद्ध कैसे करता है क्यों हमारी माता है -
वेद ने कहा “ अपस्वन्तरमृमप्सु भेषजम् ” अथर्व1.4.4
अर्थात् अप्सु अन्त: = जल के बीच में,
अमृतम्= रोग निवारक अमृत है,
अप्सु भेषजम् = जल में औषध है ।
वेद ने और कहा - “ आप: शिव: शिवतमा: शान्ता: शान्ततमास्तास्ते कृण्वन्तु भेषजम् ”
अर्थात् जल अत्यन्त कल्याणकारी है, अत्यन्त शान्ति देने वाले हैं। वे हमारी ओषध रुप से परिचर्या करें ।
और भी देखो – यो व: शिवतमो रसस्तस्य भाजयते ह न:।
उशतीरि व मातर: “ अथर्ववेद 1.5.2
अर्थात् जो तुम्हारा (जल) का अत्यन्त सुखकारी रस है यहाँ प्राप्त हो/ कराईये ,
जैसे प्रीति करती हुई मातायें ।
इसको भी देखे-” आपो जनयथ न: “ अथर्ववेद
अर्थात् हे जलों हमको उत्पन्न करते हो ’
आहा देखो वेद ने सबकुछ खोल कर रख दिया बस हमें वेद को वेद से देखने की गंभीरता होनी चाहिए न कि हठ और दुराग्रह ।
कितना सुन्दर उपदेश है इन मन्त्रों में जैसे माता की छाव बच्चों को शान्ति देने वाली होती है सुखकारी होती है, वैसे जल भी हमारे लिए सुखकारी और शान्ति देने वाला है ,
जैसे माता हमको उत्पन्न करती है वैसे जल भी हमारी उत्पत्ति का हेतु है इस कारण तो आर्यों ने जल को माँ माना है , वेद नें माना है,
पौराणिक तो जल को माँ मानकर न जाने क्या क्या गंगा में बहा और विसर्जन करा दिया, गंगा को मोक्षदायिनी और पाप निवारणी बता दिया।अगर ये वेद को पढते तो गंगा को रोगनिवारणी और सुखदायिनी कहते ,
पर क्या करे पौराणिक पौराणिक हैं और आर्य आर्य ।
अतः आर्य बने।आर्य बनाये।
वेद पढ़ें । वेद पढ़ायें।
वेद सुने । वेद सुनाएँ।
विश्व की एक मात्र धार्मिक ग्रन्थ :वेद
।।जय आर्य जय आर्यावर्त।।
from Tumblr http://ift.tt/1TMce9i
via IFTTT
No comments:
Post a Comment