॥ सामवेद ॥
॥ ओ ३ म् ॥ अग्ने मृड महाँ अस्यय आ देवयुं जनम् । इयेथ बर्हिरासदम् ॥
॥ सामवेद । पूर्वार्चिक: ।आग्नेय काण्डम् । प्रथमोSअध्यायः । प्रथमप्रपाठकस्य प्रथमोSर्ध: । तृतीया दशतिः । मंत्रः ३ ॥
हे प्रभु ! आप अपने भक्तों को सदाही प्रगति पथ पर अग्रगामी बनाते है । आप अत्यंत महान् हो , सर्वान्तर्यामी सर्वव्यापक हो, आप हम सबको सुखी कीजिए ।हम सब के कर्म शुभ होवें जिससे की हमारा भविष्य भी शुभ होवें , हम उत्तम कल्याण को प्राप्त होवें ।
हे प्रभु आप शुभ गुणों को आत्मसात करनेवाले मनुष्यों के हृदयाकाश से दुर्गुणों को हटाकर आपके शुभ गुणों की स्थापना करते है , इसलिए हे प्रभु हम दुर्गुणों को छोड़कर शुभगुणों को धारण करनेवाले बनें ।
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