Tuesday, December 23, 2014

[12/22, 10:16 AM] Sudarshan Kumar: धरती की सबसे मेहंगी जगह सिरहिंद फतेहगढ़ साहब में है, यहां पर श्री...

[12/22, 10:16 AM] Sudarshan Kumar: धरती की सबसे मेहंगी जगह सिरहिंद फतेहगढ़ साहब में है, यहां पर श्री गुरु गोबिंद सिंह जी के छोटे साहिबजादों का अंतिम संस्कार किया गया था, हिन्दू सेठ दीवान टोंडर मल ने यह जगह 78000 सोने की मोहरे (सिक्के) जमीन पर फेला कर मुस्लिम बादशाह से जमीन खरीदी थी। सोने की कीमत मुताबिक इस 4 स्केयर मीटर जमीन की कीमत 2500000000 (दो अरब पचास करोड़) बनती है। दुनिया की सबसे मेहंगी जगह खरीदने का रिकॉर्ड आज सनातन धर्म द्वारा सिख धर्म के इतिहास में दर्ज करवाया गया है। आजतक दुनिया के इतिहास में इतनी मेहंगी जगह कही नही खरीदी गयी। इस बात से हमे यह शिक्षा भी लेनी चाहिए के हिन्दू सिख भाइयों का रिश्ता नाख़ून और मॉस वाला है। हर हर महादेव, सत श्री अकाल

[12/22, 2:33 PM] विनोद आर्य: यजुर्वेद अध्याय २ मन्त्र ७


अनेक प्रकार के यान और अस्त्र शस्त्रों के निर्माण और उनके क्रियान्वन में अग्नि सबसे बड़ा माध्यम है


अग्ने॑ वाजजि॒द्वाजन्त्वा सरि॒ष्यन्तँ वाज॒जित सम्मा॑र्ज्मि नमो॑ दे॒वेभ्यः॑ स्व॒धा पि॒तृभ्यः॑ सु॒यमे॑ मे भूयास्तम् ॥२-७॥


भावार्थ:- ईश्वर उपदेश करता है कि प्रथम मन्त्र में कहे हुए यज्ञ का मुख्य साधन अग्नि होता है,


क्योंकि जैसे प्रत्यक्ष में भी उसकी लपट देखने में आती है,


वैसे अग्नि का ऊपर ही को चलने जलने का स्वभाव है तथा सब पदार्थों के छिन्न-भिन्न करने का भी उसका स्वभाव है और यान वा अस्त्र-शस्त्रों में अच्छी प्रकार युक्त किया हुआ शीघ्र गमन वा विजय का हेतु होकर वसन्त आदि ऋतुओं से उत्तम-उत्तम पदार्थों का सम्पादन करके अन्न और जल को शुद्ध वा सुख देने वाले कर देता है,


ऐसा जानना चाहिये।।

[12/22, 7:56 PM] Sudarshan Kumar: क्यों सफल होते हैं यह ईसाई मिशनरियां धर्म परिवर्तन करवाने में? इसके पीछे कारण एक ही है।


एक लघु कथा


बुधइया आज रॉजर बन रहा था। चर्च के फादर ने आज उसे एक नया नाम दिया था।


उसके दोनों कन्धों को बारी बारी छूकर फादर कुछ बुदबुदा रहे थे जो उसकी समझ नहीं आ रहा था पर इतना पता था कि आज के बाद उसे ठाकुरों के कुँए से पाने भरने से कोई नहीं रोकेगा। एक नए गाँव में, नए नाम के साथ अपने नए जीवन का आरम्भ कर रहा था। उसके लिए नए रोज़गार का भी प्रबंध हो चूका था चर्च की ओर से। जब तक वह कार्य आरम्भ करे उसे खर्च की चिंता नहीं थी, फादर की ओर से जो मिला था वह उसकी जेब को फुला रहा था।


चर्च से परिवार सहित बाहर निकलते समय उसका जीवन मानो एक चलचित्र की तरह उसकी आँखों के सामने घूम गया।


उसने देखा कि वह एक छोटा बच्चा है और उसकी माँ ने आज कुँए से पानी भरा था। उस कुँए से जिसपर ठाकुरों का अधिकार था क्यों कि जिस कुँए से वह सदा से पानी भरते थे उसमे एक मवेशी के गिरकर मर जाने से पानी पीने योग्य नहीं रहा था। और इसके अपराध में उसकी माँ को ठाकुर उठकर ले गए थे और ३ दिनों के सामूहिक बलात्कार के बाद ही छोड़ा था।


उसने देखा कि उसके अपने पड़ोस के भीखू भैया की बरात में दूल्हे को गोली से मार दिया गया था क्योंकि वह घोड़ी पर बैठकर दुल्हन के घर जा रहा था।


वह प्रतिदिन देखता था कि उसके माता पिता मंदिर की सीढ़ियों के नीचे से ही प्रभु को प्रणाम करते थे क्योंकि उन्हें मंदिर में जाना वर्जित था।


वह यह भी जानता था कि पंडित जी के बाहर आते ही उसे कई कदम पीछे जाना चाहिए ताकि उसकी परछाई से पंडित जी अपवित्र न हो जाएँ।


न जाने क्यों आज उसका गहरी -२ साँसे लेने का मन कर रहा था , साँसे जो घुट सी गई थी वह चाहता था आज उन्हें सब बंधनो से स्वतन्त्र कर दे।


मरने के बाद स्वर्ग मिलेगा यह उसे बताया गया था, पर उसे चिंता नहीं थी, वह तो चाहता था कि इस जनम में उसे वह नरक न मिले जो उसके माता पिता को मिला था। आज वह मंदिर के सामने से जा रहा था पर उस ओर आँख उठाकर भी नहीं देखा उसने।


अनिल अरोरा - जर्मनी

[12/23, 7:03 AM] विक्रान्त योगी: दयानंद की देशभक्ति

प्रस्तुति: फरहाना ताज

कलकत्ता में स्वामी जी की वायसराय से भेंट हुई

थी।

लार्ड नार्थब्रुक ने यह घटना अपनी साप्ताहिक

डायरी में प्रधानमंत्री और इंग्लैंड के

सैक्रेट्री ऑफ स्टेट को लिखी। इसमें वायसराय ने

यह भी लिखा कि उसने इस बागी फकीर

की कड़ी निगरानी के लिये गुप्तचर नियुक्त करने

का आदेश दे दिया है।

वायसराय की डायरी में जो लिखा गया, उसका अनुवाद

इस प्रकार है, ‘‘औपचारिक शिष्टाचार के उपरान्त

वायसराय ने स्वामी जी से पूछा, ‘‘पण्डित दयानन्द!

मुझे सूचना मिली है कि आप द्वारा दूसरे मत-

मतान्तरों व धर्मों की कड़ी आलोचना उन धर्मों के

मानने वालों के मन में क्षोभ उत्पन्न करती है।

विशेष रूप में मुस्लिम और ईसाई जनता के। क्या आप

अपने दुश्मनो से किसी प्रकार का भय अनुभव करते

हैं? अर्थात् क्या आप सरकार से

अपनी सुरक्षा का कोई प्रबन्ध चाहते हैं?’’

स्वामी दयानन्द ने उत्तर दिया, ‘‘मुझे अपने

विचारों का प्रचार करने की राज्य में

पूरी स्वतन्त्रता है। मुझे व्यक्तिगत रूप में

किसी प्रकार का खतरा नहीं है।’’

‘‘यदि ऐसा ही है तो क्या आप अपने उपदेश में

अंग्रेजी शासन द्वारा उपलब्ध

उपकारों का भी वर्णन किया करेंगे? और शासन चलाने

में हमारी मदद करेंगे?’’

‘‘यह असंभव है। मैं हमेशा अंग्रेज़ी शासन के विनाश

के बारे ही सोचता हूं।’’

———

एक दिन पटना में स्वामी दयानन्द सरस्वती उपदेश दे

रहे थे। उस दिन भारत के जंगी लाट लार्ड राबर्टस

भी पधारे हुए थे। जंगी लाट ने

स्वामी जी को प्रणाम करके कहा, ‘‘स्वामी जी,

मेरा विश्वास है कि फकीरों की दुआ भगवान अवश्य

सुनता है, इसलिए आप दुआ करें कि भारत में

अंग्रेजी राज स्थायी हो।’’

यह बात सुनकर स्वामी जी का चेहरा लाल हो गया और

वे बोले, ‘‘मैं तो भगवान से सुबह-शाम

प्रार्थना किया करता हूं कि भारत से

जल्दी ही अंग्रेजी शासन समाप्त हो जाए,

क्योंकि कोई कितना ही अच्छा शासन क्यों न करे,

परन्तु जो स्वदेशी राज्य होता है, वही सर्वोपरि और

उत्तम होता है।’’

इस पर जंगी लाट को क्रोध आ गया, वे स्वामी जी से

कहने लगे, ‘‘यदि मैं तुम्हें तोप के सामने बंधवाकर

कहूं कि हमारे राज्य के लिए शुभकामना करो,

नहीं तो तोप से उड़ा दिये जाओगे, तब क्या करोगे?’’

फिर क्या था, स्वामी दयानन्द सरस्वती ने सिंह

गर्जना की, और बोले, ‘‘मैं कहूंगा मुझे तोप से

उड़ा दो!

मेरी ही पुस्तक के अंश

मैंने अपने प्रेरणास्रोत स्वामी दयानंद के जीवन पर

आधारित पांच पुस्तकें लिखी हैं।




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