Monday, December 29, 2014

ज्ञेयः स नित्य संन्यासी यो न द्वेष्टि न कांक्षति। निर्द्वन्द्वो हि महाबाहो सुखं...

ज्ञेयः स नित्य संन्यासी यो न द्वेष्टि न कांक्षति।

निर्द्वन्द्वो हि महाबाहो सुखं बन्धात्प्रमुच्यते।।


उसे सदा संन्यासी समझना चाहिए जो न द्वेष करता है और न हि चाहना। हे महाबाहु अर्जुन, जो द्वन्द्वों से रहित होता है, वह सरलता से कर्म के बन्धन से छूट जाता है।




from Tumblr http://bipinsavaliya.tumblr.com/post/106565712037

via IFTTT

No comments:

Post a Comment