Monday, April 6, 2015

लौट आता हूँ वापस घर की तरफ… हर रोज़ थका-हारा, आज तक समझ नहीं आया की जीने के लिए काम करता हूँ...

लौट आता हूँ वापस घर की तरफ… हर रोज़ थका-हारा,

आज तक समझ नहीं आया की जीने के लिए काम करता हूँ या काम करने के लिए जीता हूँ।

बचपन में सबसे अधिक बार पूछा गया सवाल -

“बङे हो कर क्या बनना है ?”

जवाब अब मिला है, - “फिर से बच्चा बनना है.


“थक गया हूँ तेरी नौकरी से ऐ जिन्दगी

मुनासिब होगा मेरा हिसाब कर दे…!!”


दोस्तों से बिछड़ कर यह हकीकत खुली…


बेशक, कमीने थे पर रौनक उन्ही से थी!!




भरी जेब ने ’ दुनिया ’ की पहेचान करवाई और खाली जेब ने ’ अपनो ’ की.


जब लगे पैसा कमाने, तो समझ आया,

शौक तो मां-बाप के पैसों से पुरे होते थे,

अपने पैसों से तो सिर्फ जरूरतें पुरी होती है। …!!!




हंसने की इच्छा ना हो…

तो भी हसना पड़ता है…

.

कोई जब पूछे कैसे हो…??

तो मजे में हूँ कहना पड़ता है…

.


ये ज़िन्दगी का रंगमंच है दोस्तों….

यहाँ हर एक को नाटक करना पड़ता है.




"माचिस की ज़रूरत यहाँ नहीं पड़ती…

यहाँ आदमी आदमी से जलता है…!!”




दुनिया के बड़े से बड़े साइंटिस्ट,

ये ढूँढ रहे है की मंगल ग्रह पर जीवन है या नहीं,


पर आदमी ये नहीं ढूँढ रहा

कि जीवन में मंगल है या नहीं।




मंदिर में फूल चढ़ा कर आए तो यह एहसास हुआ कि…


पत्थरों को मनाने में ,

फूलों का क़त्ल कर आए हम




गए थे गुनाहों की माफ़ी माँगने ….

वहाँ एक और गुनाह कर आए हम ।।




TRUE LINES..




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