Saturday, April 25, 2015

हवन(यज्ञ) Vs भोग:- अग्नि में जब कोई पदार्थ डाला जाता है तो कुछ परिवर्तित होकर और अति सूक्ष्म होकर...

हवन(यज्ञ) Vs भोग:-
अग्नि में जब कोई पदार्थ डाला जाता है तो कुछ परिवर्तित होकर और अति सूक्ष्म होकर वातावरण में दूर तक पहुँचता है । 
एक प्रयोग स्वयं करके देख लें ।


थोड़ी हवन सामग्री एक थाली में रख कर देखिये कि उसकी सुगन्ध कितनी दूर तक जाती है और फिर अग्नि में डाल कर देखिये कि कितनी दूर तक जाती है । 
यह प्रयोग आप लाल मिर्च के पाउडर से भी कर सकते है।


प्रायः मूर्ति पर चढ़े सब पदार्थ कूड़े में जाते हैं । पशुओं को भी प्राप्त नहीं होते ।


१ )  हवन ओर मूर्ति पर भोग लगाने में अंतर :-
हवन करने से रोग जन्तु नष्ट होते है जबकि भोग लगाने से फलते फूलते है ..
हवन की अग्नि रोग जन्तुओ का नाश करती है जेसे सूर्य की किरणें जबकि भोग सड जाता है या मल्ल पर बेठी मखिया आ कर उसपर गंदगी कर देती है फिर उसे कोई मवेशी खाता है ओर रोगी बनता है …जबकि हवन में भस्म हो गये पधार्थ न कोई खाता है न सड़ता है …
ये भस्म खेतो में डाले तो एक अच्छी खाद का भी काम करते है …


२ ) आप एक अंधे को दर्पण दिखाओ ओर उससे कहो की अपनी शक्ल देखो क्या ये उसके साथ मजाक नही ….
या अनिल अम्बानी को १ रुपया देकर बोलो की टॉफी खा लेना तो क्या इनके साथ यह मजाक नही होगा …
इसी तरह सभी ऐश्वर्य से भरपुर ब्रह्म की मूर्ति बना कर एक रूपये चढ़ाना क्या उनका उपहास उठाना नही है …जो ब्रह्म इन्द्रियों से रहित है उसके आगे ५६ भोग लगाना क्या उसका अपमान नही!
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महोदय जी मूर्ति पर चढ़ाए फल तो पण्डित या उसके परिवार वाले खा लेतें हैं परन्तु थोड़ी सी मिठाई जो मूर्ति के होठ पर लगाई जाती है उसको कौन खाता है ???


यद्यपि धूप में कुछ सामग्री हवन सामाग्री समान ही होती है परन्तु धूप का प्रभावित क्षेत्र बहुत कम होता है हवन के प्रभावित क्षेत्र की तुलना में ।
हवन का उद्देश्य केवल सुगंधि फैलाना नहीं क्योंकि सामग्री में औषधीय गुण भी होते हैं जबकि एक सेंट में केवल सुगंध होती है ।
हवन के लिये वह लकड़ी ( समिधा ) ही प्रयुक्त होती है जो घुन रहित हो ।


एक अवैदिक कृत्य ( मूर्ति पूजा ) को सही सिद्ध करने को कितने कुतर्क प्रस्तुत करोगे आप जी ???


ऋषियों ने यज्ञ को श्रेष्ठ कर्म कहा है !!
है कोई शास्त्र वचन जिसमें  मूर्ति पूजा को श्रेष्ठ कर्म माना हो ।


वेद जो कि धर्म का मूल है और परम प्रमाण है उसमें मूर्ति पूजा का कोई निर्देश नहीं है ।
उसमें तो केवल निराकार परमात्मा की उपासना का निर्देश है ।


वेदान्त दर्शन जो कि परमात्मा को समझने के लिये महर्षि व्यास रचित सर्वोत्तम दार्शनिक ग्रन्थ है उसमें स्पष्ट लिखा है ।
न प्रतीके न हि सः 
अर्थात् उस परमात्मा का कोई प्रतीक नहीं ।
सम्भवतः आपको वेदान्त दर्शन भी शब्दों की बाजीगरी लगे क्योंकि जड़ को पूजते पूजते बुद्धि भी जड़ हो जाती है ।


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