Monday, April 6, 2015

ॐ सर्वेभ्यो नमः। एक मात्र परमेश्वर को अनुभव करके ही जीव सुख-दुःख से पार हो सकता है। तत्र को मोहः को...

ॐ सर्वेभ्यो नमः।

एक मात्र परमेश्वर को अनुभव करके ही जीव सुख-दुःख से पार हो सकता है।

तत्र को मोहः को शोकः एकत्वमनुपश्यतः ।

और

हर्ष शोकौ जहाति।

संसार के विभिन्न भोगो में पड़कर मनुष्य अपने जीवन को व्यर्थ में ही नष्ट कर डालते हैं। यदि वे आप्त पुरुषों और वेद वाणी पर विश्वास कर लें तो उनके लिए आगे का मार्ग स्पष्ट हो जाता है।

योगिराज आर्यनरेश श्री कृष्णचन्द्र जी कहते हैं कि—-

ये हि संस्पर्शजा भोगाः दुःख योनय एव ते।

आद्यन्तवन्तः कौन्तेय न तेषु रमते बुधः।।

अर्थात् इन्द्रियों और विषयों के संयोग से उत्पन्न जितने भोग हैं, भले ही जीव को वे सुखकारक लगते हैं तो भी वे अनेक अन्य दुखों का कारण होतें हैं और ये सुख आदि अंत वाले होते है; तात्पर्य कुछ समय पश्चात् नष्ट हो जाते है; इसलिए बुद्धिमान पुरुष इन क्षणिक सुख वाले विषयों में नहीं रमता।

यदि कोई मनुष्य इतना सब कुछ जानने के उपरांत भी विषयों में ही मन लगाता है तो उसकी मूर्खता ही है। मनुष्य का अंतिम और प्रधान लक्ष्य परमेश्वर प्राप्ति होना चाहिए, क्यूंकि वही निरंतर सुख और शांति का केंद्र है। उसकी प्राप्ति के लिए मनुष्य को सतत प्रयत्नशील रहना चाहिए। यही मनुष्य जीवन का परम कर्तव्य है। शास्त्र कहता है– ईश्वर का मिलना सम्भव और सरल है, तभी मनुष्य शरीर और विचारने का सामर्थ्य जीव को ईश्वर ने दिया और ऐसा करके मनुष्य को मोक्ष का अधिकारी बना दिया।

मनुष्य को ईश्वर प्राप्ति का जन्मसिद्ध अधिकार है। परन्तु फिर भी वह अपनी अयोग्यता और ओछे आचरण के कारण अपने अधिकार से वंचित होकर कष्ट भोगता है।

वस्तुतः निस्वार्थ दया करने वाले करुनासिंधु ईश्वर की दयालुता को न अनुभव करने के कारण ही कृतघ्नता से अपना अमुल्य जीवन खो देतेहैं। यही मनुष्य की सबसे बड़ी विफलता है। ईश्वर को भूल काल पर भरोसा करने से मनुष्य अपने को सदा रहने वाला मानकर क्षणिक भोगों में स्वयम को फंसा लेता। परन्तु होना इसके ठीक विपरीत चाहिए। अब भी समय है चेत जाइये; अन्यथा निरंतर होने वाला कष्ट तो आपके स्वागत के लिए सर्वदा बाहें फैलाये खड़ा ही है आपके सम्मुख। अष्टांगयोगनिष्ठ विक्रांत fb vikrantarya52@Gmail.com और whatsapp ७४०४४३७१९९।




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