Thursday, April 9, 2015

ॐ पातंजलयोग सूत्रं प्रथम समाधिपाद अथ योगानुशासनम्।।१।। अब हम योग के शासन का अनुसरण आरम्भ करते...



पातंजलयोग सूत्रं

प्रथम समाधिपाद

अथ योगानुशासनम्।।१।।

अब हम योग के शासन का अनुसरण आरम्भ करते हैं।

पुराने समय में भी लोग किसी शुभ कार्य के आरम्भ से पहले ईश्वर को स्मरण किया करते थे। अन्तर इतना है के उस समय के ऋषि आदि ॐ और अथ शब्द का प्रयोग करते थे। ॐ तो स्पष्टतः ईश्वर का ही नाम है पर यहाँ अथ का प्रयोग हुआ,ये प्रधानतः अधिकारता का भी सूचक है मंगल होने के साथ साथ। इस अथ से पतंजली जी कहना चाहते हैं के वे बस यूँ ही सुना सुनाया उपदेश नही कर रहे अपितु वे इसे कहने के योग्य हैं,निष्णात् अर्थात् पारंगत है इस विषय के;सो इसका उपदेश आरम्भ करतें है।

ऐसा भी नही है के ये उनका ही निर्मित कोई नया मार्ग है,अनु शब्द अनुसरन को कहता है'अर्थात् वे भी भले ही ज्ञानी हैं विषय के पर ये उनका अपना बनाया ना होकर ये अनुसरण करके ही सिद्धहस्त हुए हैं।

अनुशरण किसका किया ये शासन शब्द स्पष्ट करता है। पतंजली जी से पूर्व योग के जो ऋषि हुए हैं और उनके भी गुरु लोग जो परमपिता परमेश्वर के साक्षात् शिष्य थे,उस ईश्वर और उन आदिकालिन ऋषियों के जो उत्तम योग विद्या व्यवस्थित की थी,उसे सुशासन मानकर पतंजली जी उसी का आचरण करके उसी का उपदेश आरम्भ करते हैं।

योग का सर्वप्रथम स्पष्ट रूपसे उपदेश करने का श्रेय सर्वप्रथम महर्षि कपिल को जाता है। उन्होंने प्रकृति को समझाने हेतु अपने शिष्य आसुरि को उप्देश किया था। तब के लोगो के लिए समाधी शब्द से ही योग के विषय को समझना सरल था सो अधिक विस्तार प्रकृतिक तत्वों का उपदेश में किया समाधी और ईश्वर आदि का नही सो पतंजली जी को साक्षात ज्ञान हेतु योगदर्शन पर मुनि वेदव्यास कृष्ण द्वेपायन को ब्रह्मसूत्र नाम से वेदान्त शास्त्र का उपदेश ईश्वर के स्वरूप को स्पष्ट करना पड़ा।

ईश्वर के साथ हम अपने पूर्वज और पश्चात् होने वाले समस्त ऋषि मंडल को प्रणाम करते हैं।।

अष्टांगयोगनिष्ठ विक्रांत ॐ।। http://ift.tt/1Ec8iKu

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