Monday, August 22, 2016

ईश्वरीय वाणी यजुर्वेद:– तमेव विदित्याति मृत्युमेति।। तुम्हे जानकर ही मृत्यु से छूट सकते...

ईश्वरीय वाणी यजुर्वेद:– तमेव विदित्याति मृत्युमेति।।
तुम्हे जानकर ही मृत्यु से छूट सकते हैं।।
अत्यंत आत्मीयता और प्रेम में तू सम्बोधन प्रयोग होता है ईश्वर और माँ के प्रति…
संसार के बड़े बड़े ज्ञानी डगमगा जाते हैं मृत्यु के भय से,नहीं घबराते तो कर्तव्यनिष्ठ क्षत्रिय(यौद्धा) अथवा आत्मा के प्रत्यक्ष जानने वाले…
मृत्यु से बड़ी पीड़ा कोई नहीं… पढ़ा और सुना जाता है जब प्राणों का उत्क्रमण होता है अर्थात् जब सुक्ष्म शरीर ज्ञानेन्द्रियों कर्मेन्द्रियों को स्थूल शरीर के इन्द्रिय गोलकों से वापिस खींचता है तब सभी प्राण स्थूल देह से सिमटते हैं सुक्ष्म क़ी ओर… कहा जाता है तब जीव अत्यंत पीड़ा का अनुभव करता है,कई कई जगह वर्णन आया है कि जैसे लाखों बिच्छू एक साथ डंक मार रहें हो इतनी ही पीड़ा होती है…पर प्रकृति दयावान है जब अत्यंत पीड़ा का सामान जीव को करना होता है तो यह उसे अचेत करके सुषुप्ति में पहुंचा देती है… जब जब प्राण निकलते हैं तब तब इस कष्ट को सहना होता है,हर प्राणी को हर बार हर जन्म में मृत्यु आती है और यह असहय कष्ट सहना ही होता है चाहे राजा हो अथवा भिक्षुक कोई अंतर नही पड़ता… एक और कष्ट है अत्यंत मानसिक क्लेश देने वाला कि जब हम जन्म लेते हैं तो इसी जीवन के आरम्भ से लेकर अंत तक महसूस करते हैं,इससे पूर्व का और पश्चात् का जीवन हम नही जानते(नही अनुभव होता); इस करके सारा जीवन ही शरीर के अस्तित्व में ही मैं की अनुभूति होती रहती है…परिणाम ये होता है जब जब मरने का जिक्र आता है तब तब उसे अपना सम्पूर्ण अस्तित्व समाप्त होता दिखाई देता है क्यूंकि उसने कभी स्वयं को शरीर से भिन्न अनुभव किया ही नही… जिससे उसे अनुभव होता है मैं मर रहा हूँ अर्थात् मेरा अस्तित्व समाप्त हो रहा है, ये जो संसार में मेरी सम्पत्ति और मेरे प्रियजन हैं सब मुझसे हमेशा के लिए छूट रहें हैं इनसे मेरा अब कभी पुनः मिलन न होगा… शरीर को ही मैं अनुभव किया सारी आयु इससे उससे जब शरीर प्राणहीन होता दिखता है तब वह कहता है आह मैं मर रहा हूँ माने के उसे स्वयं के नष्ट होने की अनुभूति होती है और यही सबसे कष्टकारी बात है कि अपना अस्तित्व ही अपने सामने नष्ट होता दिखे… सो इस कष्ट से मुक्ति तभी सम्भव है जब मरण से ही मुक्ति मिल जाये… मरण से मुक्ति तब सम्भव है जब जन्म ही न हो दौबारा… और यह तब सम्भव है जब ईश्वर अनुग्रह और योगाग्नि से चित्त के संस्कार जलभुनकर भस्म हो जाएँ और चित्त में वासना वृत्ति जन्म न लेकर ईश्वर में ही तल्लीन ही जाएँ…इसलिए #अष्टांगयोगनिष्ठ विक्रान्त और #ashok कुमार की आपसे प्रार्थना है कि हे ईश्वर,हे अमृत! हमे इस बार बार के मृत्यु की असहनीय पीड़ा से छुटकारा दिलवाईये।…


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