Wednesday, August 31, 2016

*जाति क्या है…?* 💎 जन्मतः प्राप्त उपाधि ही जाति है। जो जिससे जन्म लेता है वह उसी जाति की...

*जाति क्या है…?*
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जन्मतः प्राप्त उपाधि ही जाति है।
जो जिससे जन्म लेता है वह उसी जाति की उपाधि वाला होता है।

जैसे- दशहरी आम के बीज से जन्मा या  उत्पन्न हुआ वृक्ष ही दशहरी आम की जाति का होता है।
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*जातिवाद क्या है…?*
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मानवसमाज में जाति के आधार पर कर्म-पद-सम्पदा पर स्वामित्व की प्रथा ही जातिवाद है।
जातिवादी व्यवस्था के अंतर्गत समाज में भी जंगल की भांति जो जिससे जन्म लेता है वह अपने पिता के कर्म, पद और सम्पदा का स्वामी बन जाया करता है।
समाज में कर्म-पद-सम्पदा पर यह पैतृक स्वामित्व की परम्परा ही जातिवाद का मुख्य जहर है।
जिसने पूरी दुनिया को बर्बाद किया है।
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*जाति और वंश में क्या भेद है..?*
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जाति केवल एक पीढ़ी तक ही सीमित रहती है किन्तु वंश लंबी अवधि तक लगातार पीढ़ी-दर-दर चलता रहता है।
पीढ़ियों की श्रंखला को ही वंश कहते हैं।
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*वंश और गोत्र में क्या भेद है…?*
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जब कोई वंश किसी विशेष गुणकौशल संपन्न महापुरुष के नाम से जाना जाता है तो उसे ही गोत्र कहा जाता है।
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*वर्ण क्या है…?*
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संस्कृत की ‘वृ’ धातु से 'वर्ण’ शब्द बना है।
जिसका अर्थ है- चुनना, चयन करना, योग्य होना, वरेण्य होना, सुपात्र होना आदि।
विशिष्ट क्षमताओं योग्यताओं गुणों कौशलों के विकास द्वारा सुपात्र सिद्ध होना ही वरेण्यता है।
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*जाति और वर्ण में क्या भेद है..?*
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जन्म पर आधारित व्यवस्था ही जाति है।
गुण पर आधारित व्यवस्था ही वर्ण है।
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*जातिवाद और वर्णवाद में क्या भेद है…?*
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जातीयताक्रम पर आधारित व्यवस्था ही जातिवाद है।
वरीयताक्रम पर आधारित व्यवस्था ही वर्णवाद है।।

जातिवाद से 'पशुता’ उत्पन्न होती है।
वर्णवाद से 'मानवता’ उत्पन्न होती है।।

जातिवाद से समाज में 'जंगलराज’ उत्पन्न होता है।
वर्णवाद से समाज में 'मंगलराज’ उत्पन्न होता है।।
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*जातिवाद की समाप्ति का उपाय क्या है..?*
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समाज में वर्ण व्यवस्था की स्थापना ही जातिवाद की समाप्ति का एकमात्र उपाय है..!!
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*वर्ण व्यवस्था क्या है..?*
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मनुष्यों में चार प्रकार की क्षमताओं के विकास की संभावना होती है- शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक, चेतनात्मक।
इन चारों क्षमताओं को ही क्रमशः PQ, IQ, EQ, SQ कहते हैं।
मूलतः इन्हीं चारों क्षमताओं पर आधारित पात्रता के अनुरूप कर्म पद सम्पदाओं पर स्वामित्व का विधान ही 'वर्णव्यवस्था’ है।
*PQ को कृषि संबंधी कर्म पद सम्पदा का स्वामित्व न्यायसंगत है।*
*IQ को वाणिज्य संबंधी कर्म पद सम्पदा का स्वामित्व न्यायसंगत है।*
*EQ को राज्य संबंधी कर्म पद सम्पदा का स्वामित्व न्यायसंगत है।*
*SQ को नेतृत्व संबंधी कर्म पद सम्पदा का स्वामित्व न्यायसंगत है।*
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*वर्ण व्यवस्था को समाज में लागू कैसे किया जा सकता है..?*
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समाज में वर्णव्यवस्था को लागू करना बहुत सरल है।
निम्लिखित उपाय अपनाएं…
*@ वर्णव्यवस्था की क्रमबद्ध पात्रताओं का सही सैद्धांतिक प्रतिपादन।*
*@ चारों वर्णात्मक पात्रताओं के परीक्षण की समुचित व्यवस्था।*
*@ वर्णव्यवस्था स्वीकार करने वाले व्यक्तियों की पात्रता का समुचित परीक्षण और पात्रताप्रमाणीकरण।*
*@ परीक्षणों द्वारा सिद्ध पात्रता के अनुरूप कर्म-पद-सम्पदा पर स्वामित्व का अधिकार।*
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क्या इस विज्ञानसम्मत न्यायसंगत वर्णव्यवस्था में हिन्दू मुस्लिम, सिख, ईसाई, जैन, बौद्ध, पारसी, बहाई अथवा किसी भी मज़हब या संप्रदाय या किसी भी जाति और वंश के लोग भी सम्मिलित हो सकते हैं…?
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अवश्य….!!
यह वर्ण व्यवस्था सार्वजनिक, सर्वदेशीय और सर्वकालिक है।
यह सर्वहितकारी और सर्वसुखदायक है।
यह विश्वबंधुत्व और वसुधैव कुटुम्बकम् की प्रतिष्ठापक है।
तथा मानव जीवन के समग्र विकास में परम सहायक भी है।
'न्यायधर्मसभा’ द्वारा प्रकाशित पुस्तक “मानवजीवनविकास”
में इस न्यायशील वर्णव्यववस्था का शुद्ध सैद्धांतिक प्रतिपादन सभी के लिए पठनीय है..!!!
यह पुस्तक गरीबों के लिए नि:शुल्क और सामान्य आर्थिक दशा वालों के लिए सशुल्क उपलब्ध है।

*-(NDS हरिद्वार)*
*लेख : 04-06-2016*
*_www.nyayadharmsabha.org_*


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