Thursday, September 29, 2016

ओ३म् *🌷अण्डा―एक जहर🌷* _(1) अण्डे में कोलिस्ट्रोल की मात्रा अधिक होती है।इसका पीत-भाग कोलिस्ट्रोल...

ओ३म्

*🌷अण्डा―एक जहर🌷*

_(1) अण्डे में कोलिस्ट्रोल की मात्रा अधिक होती है।इसका पीत-भाग कोलिस्ट्रोल का बहुत बड़ा स्रोत है।यह मानव चर्म की परतों में जमा हो धमनियों को सिकुड़ा देता है।परिणामतः दिल का दौरा, लकवा, जेथोमा जैसे भयंकर रोग होने की सम्भावना बढ़ जाती है।"हायपर-कौलिस्टेरोलेमिया" होने पर मनुष्य उच्च रक्तचाप का रोगी बन जाता है।बच्चों के लिए तो यह बिल्कुल भी अनुकूल नहीं है।इसमें सोडियम सॉल्ट की मात्रा अधिक होती है।ब्लडप्रैशर के मरीजों के लिए जहर रुप है।अण्डे के सफेद भाग में नमक और पीले भाग में कोलिस्ट्रोल दोनों ही स्वास्थ्य हेतु घातक हैं।_

_(2) अण्डे में कार्बोहाइड्रेटस बिल्कुल नहीं है।इससे कब्ज, जोडों के दर्द जैसी बीमारियां अनायास हो जाती हैं।अण्डा कफदायक होने से शरीर के पोषक-तत्त्वों को असन्तुलित कर देता है।अण्डे में साल्मोनेला नामक बैक्टीरिया के अतिरिक्त एक नया माइक्रोव बैक्टीरिया भी पाया जाता है।यह आंतों में भयंकर रोग उत्पन्न करता है।अण्डे खाने से गठिया, गाउट जैसी वात-जनित बीमारियाँ हो जाती हैं जो बुढ़ापे में खतरनाक, पीड़ादायक मोड़ ले-लेती हैं।अण्डे में तुरन्त ऊर्जा देने वाले शुगर और स्टार्च नहीं हैं।_

_(3) पोल्ट्री-फार्म की मुर्गियों को रख-रखाव हेतु विभिन्न प्रकार की घातक दवाइयाँ दी जाती हैं, या उनका छिड़काव किया जाता है, परिणामतः वे घातक दवाइयों का बहुत सारा अंश श्वास अथवा मुँह के माध्यम से खाने के संग पेट में पहुँच जाता है।यही कारण है कि कई प्रयोगों द्वारा सिद्ध हो चुका है कि उनके पेट में डी०डी०टी० जैसा जहर भी पाया जाता है जो खाने वालों के लिए बहुत हानिकारक सिद्ध होता है।जैसे गाय, बैल, भैंसों, सूअर, बकरा आदि को मांसवर्द्धक दावाएँ दी जाती हैं।पोल्ट्री-फार्मों में भी इनका प्रयोग धड़ल्ले से हो रहा है।चूजे और गिद्ध को एण्टीबायोटिक्स की हल्की मात्रा वजन वृद्धि हेतु दी जाती है और उनका व्यापारिक शोषण किया जाता है।बुद्धिधारियो ! जरा गम्भीर चिन्तन करें।ऐसे अण्डे, मांस खाने वालों पर इसका क्या दुष्परिणाम होगा?क्या यह मनुष्य समाज पर अभिशाप सिद्ध नहीं होगा ?_

_(4) अण्डे में १३.३ प्रतिशत, हरे चने में २४ तथा मूंगफली में ३१.५ प्रतिशत और सोयाबीन में ४३.२ प्रतिशत प्रोटीन होता है।एक अण्डे से ८६.५ प्रतिशत कैलोरिज़ मिलती है जबकि गेहूं के आटे से १७६.५ प्रतिशत कैलोरिज प्राप्त होती है।अण्डे कोई कैल्शियम का स्रोत भी नहीं हैं।एक अण्डे में ३० मि०ग्रा० कैल्शियम मिलता है जो कि लगभग १५ पैसे में उपलब्ध हो जाता है, इसके विपरित ७५ ग्राम सरसों की भाजी में ३० मि०ग्रा० कैल्शियम सस्ते भाव में प्राप्त हो सकता है।दूध और अण्डे को समान मानना बहुत भारी भूल सिद्ध होगी।अण्डे में विटामिन बी-२, बी-१२, तथा कैल्शियम होते हैं।अण्डे को पकाने में या तलने में बी-१, बी-२, पच्चीस प्रतिशत तक नष्ट हो जाता है और बी-१२ भी अंशतः नष्ट हो जाता है।_

_(5) भारतीय धर्म, संस्कृति अण्डे,मांस के पक्ष में नहीं है।*अथर्ववेद ८।६।१२ में स्पष्ट है कि―"मैं उन दुष्टों को नष्ट करता हूँ जो अण्डे, मांस खाते हैं।"* अण्डे कई बार एनीमल हायपर सेंसिटिविटि (पाशविक अति संवेदनशीलता) उत्पन्न कर देते हैं।परिणामतः अण्डाहारी बर्बर आदतों से नहीं चूकता। उसकी भावनाओं में जोश ही जोश होता है , होश नहीं।अतः परिणाम बहुत भयंकर भुगतने पड़ते हैं।बाद में तो केवल पछताना ही उसके पास रह जाता है।_

_(6) अण्डा कभी शाकाहारी नहीं होता। यह भ्रामक नामकरण है कि सेये हुए अण्डे का कोई प्राणिक उद्देश्य होता है, अनिषेचित अण्डे का कोई प्राणिक उद्देश्य नहीं होता। इसे अखाद्य मानना चाहिए।_

_सच्चाई तो यह है कि ये मनुष्य के सेवन हेतु नहीं बना।यह तो सेवन करने वाले को ही अप्राकृतिक बना देता है।पश्चिम देशों में अब इसे पौष्टिक आहार की श्रेणी में नहीं रखते।वहाँ इसका प्रयोग निषेध रुप में पाया जा रहा है।यदि चिन्तन करें तो विदित होगा कि मनुष्य मूलतः ‘मस्तिष्क’ है 'पेट’ नहीं।विभिन्न अध्ययन, अनुसन्धान स्पष्ट करते हैं कि अण्डाहारी का मस्तिष्क तानाशाही, अशालीनता और अपराधीवृत्ति की और झुक जाता है।भारतीय संस्कृति और सभ्यता में हमारे धार्मिक ग्रन्थ मनुष्य को यही चेतावनी देते आए हैं कि" जैसा खाए अन्न, वैसा बने मन, जैसा पीए पानी, वैसी बोले वाणी" । अर्थात् तामसिक पाशविक भोजन मानव की वृद्धि और विकास नहीं बल्कि उसके अधोपतन का कारण बनता है।_


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