Thursday, September 15, 2016

ओ३म् *🌷वैदिक धर्म की विशेषताएँ🌷* संसार के सभी मत-मतान्तरों में वैदिक धर्म का बहुत ऊँचा स्थान है।...

ओ३म्

*🌷वैदिक धर्म की विशेषताएँ🌷*

संसार के सभी मत-मतान्तरों में वैदिक धर्म का बहुत ऊँचा स्थान है। यद्यपि राजसत्ता के अभाव के कारण वैदिक धर्म का प्रचार एवं प्रसार बौद्धमत, ईसाईमत और इस्लाम की अपेक्षा कम हो गया है, तथापि जहाँ तक सैद्धान्तिक और वैचारिक उत्कृष्टता का सम्बन्ध है, कोई भी मत-मतान्तर वैदिक धर्म की समानता नहीं कर सकता।

वैदिक धर्म की सबसे बड़ी विशेषता यही है कि यह विश्व का प्राचीनतम धर्म है। संसार के जितने मत-मतान्तर हैं, वे सब वैदिक धर्म के पश्चात् ही संसार में प्रादुर्भूत हुए हैं। पारसी मत, यहूदी मत, जैन मत, बौद्ध मत, कंफ्यूशियस मत, ताओ मत, ईसाई मत, इस्लाम और सिख सम्प्रदाय―ये सभी वैदिक धर्म के पश्चात् ही आविर्भूत हुए हैं। पारसी मत ४५०० वर्ष पुराना है। यहूदी मत ३५०० वर्ष पुराना है। बौद्ध मत, जैन मत, कंफ्यूशियस मत और ताओ मत लगभग २५०० वर्ष पुराने हैं। सिख मत ५०० वर्ष की देन है। इस प्रकार ये सब मत-मतान्तर नवीन हैं। केवल वैदिक धर्म ही प्रचीन है।

वैदिक धर्म सब मत-मतान्तरों का आदिस्रोत है। जो भी अच्छाई सब मत-मतान्तरों में पाई जाती हैं, वे सब वैदिक धर्म से ही गृहीत हैं। पारसी मत में अग्नि-पूजन, गौभक्ति और पवित्र सूत्र-धारण की प्रथा तो स्पष्ट ही वैदिक धर्म की देन है। जैनों में अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह, शौच, सन्तोष, तप और स्वाध्याय―ये नौ सिद्धान्त वैदिक धर्म से ही लिये हुए हैं। ईश्वर को न मानने के कारण उन्होंने ईश्वर-प्रणिधान को छोड़ दिया। बौद्धों का पंचशील सिद्धान्त वैदिक धर्म की ही देन है। ईसाई मत के बहुत-से सिद्धान्त बौद्ध मत से लिये हुए हैं और बौद्ध मत के बहुत-से सिद्धान्त वैदिक धर्म की देन हैं। इस्लाम का एकेश्वरवाद तो वैदिक धर्म की ही देन है।

वैदिक धर्म सृष्टिक्रम के अनुकूल है। वैदि धर्म चमत्कारों, आश्चर्य-कर्मों में विश्वास नहीं करता। ये आश्चर्य-कर्म अपने-अपने गुरुओं के महत्त्व को बढ़ाने के लिए गढ़े हुए हैं।
शिवजी के सिर में से गंगा का निकलना, श्रीराम की चरणधूलि के स्पर्श से पत्थर की मूर्ति का अहल्या के रुप में बदल जाना, सीता जी का धरती से उत्पन्न होना, हनुमान जी का सूरज को निगल जाना, श्री कृष्ण का गोवर्धन पर्वत को अँगुली पर उठा लेना, कर्ण का कान से उत्पन्न होना, ध्रुव भक्त का अग्नि में न जलना, मूसा का नील नदी में डंडा मारना और नील नदी का बीच में सूख जाना, मूसा का पत्थर पर डंडा मारना और पत्थर पत्थर से झरनों का निकलना, महावीर स्वामी का अँगूठे से पृथिवी को दबाना और शेषनाग का हिल जाना, ईसा का बिना बाप के उत्पन्न होना, ईसा का मृतकों को जीवित करना, मुहम्मद साहब के चाँद के दो टुकड़े करना, गुरु नानकदेव का हाथ के संकेत से पर्वत को रोक देना, मक्के की मस्जिद को घुमा देना इत्यादि सभी बातें सृष्टिक्रम के विपरित हैं। वैदिक धर्म इन सब बातों में विश्वास नहीं करता। वैदिक धर्म की मान्यता यह है कि महापुरुषों की महानता उनके आचरण की श्रेष्ठता में है, न कि सृष्टि के नियमों को तोड़ने में है।

वैदिक धर्म की एक विशेषता है कि यह धर्म व्यक्ति-विशेष पर आधारित न होकर ईश्वरीय ज्ञान वेद पर आधारित है। पारसी मत के आधार जरदुश्त, यहूदी मत के आधार मूसा, जैन मत के आधार महावीर स्वामी, बौद्ध मत के आधार महात्मा बुद्ध, कंफ्यूशस मत के आधार कंफ्यूशस, ताओ मत के आधार ताओ, ईसाई मत के आधार ईसा, इस्लाम मत के आधार मुहम्मद और सिख सम्प्रदाय के आधार गुरु नानक हैं। यदि इन महानुभावों को इन मत-मतान्तरों से निकाल दिया जाए तो ये सब मत-मतान्तर धड़ाम-कड़ाम नीचे गिर जाते हैं, क्योंकि यही इनके संस्थापक थे। परन्तु वैदिक धर्म किसी व्यक्ति-विशेष द्वारा संचालित न होकर ईश्वरीय ज्ञान वेद पर आधारित है। वेद सारे मानव-मात्र के लिए हैं। जैसे आकाश, वायु, सूर्य, चन्द्र, जल और पृथिवी सब जीवों के लिए हैं, वैसे वेदज्ञान भी मनुष्य-मात्र के लिए है।वेद में जो शिक्षा दी गई है, वह सार्वदेशिक, सार्वकालिक और सार्वत्रिक है। वह देश और काल के बन्धन से परे है। उस शिक्षा में उदारता और विशालह्रदयता पाई जाती है। किसी प्रकार की संकुचितता और संकीर्णता नहीं पाई जाती। वेद ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र, अपने-पराए, भृत्य और महिला-वर्ग सभी के लिए है।

वेद ने इस तथ्य की स्वयं पुष्टि की है―
*यथेमां वाचं कल्याणीमावदानि जनेभ्यः ।*
*ब्रह्मराजन्याभ्यां शूद्राय चार्याय च स्वाय चारणाय ।।*―(यजु० २६/२)

*अर्थात्―*जैसे मैं इस कल्याणकारी वाणी का लोगों के लिए उपदेश करता हूँ, वैसे तुम भी किया करो। यह वेदज्ञान ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र, अपने भृत्य व स्त्री और अतिशूद्र के लिए है।


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