Saturday, September 17, 2016

*मैं बौध्द हुँ…* क्योंकि मैं शाकाहारी हुँ…क्या माँस भक्षी भी कभी बौध्द...

*मैं बौध्द हुँ…*
क्योंकि मैं शाकाहारी हुँ…क्या माँस भक्षी भी कभी बौध्द हो सकता है…!!!

मित्रों लगभग २५०० वर्ष पहले एक नये पंथ का उदय हुआ जिसे बौध्द पंथ कहा गया और उसके अनुयायी बौध्द कहलाये | बौध्द पंथ के प्रदर्शक आर्य गौतम बुध्द थे |

परन्तु १४ अक्टूबर सन् १९५३ ई० को जब बाबा साहेब अम्बेड़कर जी ने बौध्दमत का वरण किया तो उसके मानने वाले एक तबके ने भी स्वयं को बौध्द कहना शुरू कर दिया |

ऐसे लोगों में से एक बड़ा वर्ग उन लोगों का भी है जो अपने को बौध्द कहना या कहलवाना पसन्द करता है परन्तु उसके कर्म मलेच्छों जैसे है |

ऐसे लोग माँस खाते है और कहते है कि माँसभक्षण का बौध्द धर्म से कोई विरोध नहीं | ऐसे तथाकथित बौध्दों को मैं महात्मा बुध्द के मूल दर्शन और जीवन का दर्शन कराना चाहुगाँ जिससे या तो वो बौध्द बन जाए अथवा मलेच्छ हो जावें |

महात्मा बुध्द के अनुसार बौध्द वहीं है जो उनके बनाये पञ्चशीलादि केे उपदेशों को जीवन में धारण करे | इन पञ्चशील के पाँच उपदेशों में ये पहला उपदेश है कि…

*“पाणातिपाता वेरमणी सिक्वा पदं समादियामि |”*

अर्थात्
मैं प्राणि हिंसा से विरत रहने की शिक्षा ग्रहण करता हुँ ||

इसी बात को ही बुध्द ने एकादश शील के कायिक सुचरित में भी कहा है, जिसका अर्थ है…

*“मैं प्राणी हत्या से विरत रहने की शिक्षा ग्रहण करता हूँ ||”*

पाठक बतावे कि
केवल जीभ के स्वाद के लिए माँसाहार करना क्या प्राणी हिंसा या हत्या नहीं | जब है तो आप कौन से बौध्द रह गये |

महात्मा बुध्द ने अपना सम्पूर्ण जीवन भी इसी सिध्दान्त के अनुसार जीया है | उसके जीवन का एक प्रसंग है कि…

*एक बार एक गड़रिया भेड़ों का झुण्ड लेकर जा रहा था उनमें से एक भेड़ लँगड़ा था जो धीरे धीरे चलता था | चरवाहा उसको झुण्ड के साथ मिलाने के लिए डंडे मारता था |*

*जब बुध्द ने इसे देखा तो वो बहुत दुःखी हुए | और उन्होनें चरवाहे से पूछकर उस भेड़ को अपनी गोद में उठाकर नियत स्थान पर ले जाकर छोड़ा |*

ओह ! कितनी करूणा ! कितनी दया ! कितना प्रेम है मेरे बुध्द में | ऐसे बुध्द का अनुयायी भी कभी माँस भक्षण या प्राणी हिंसा कर सकता है |

अतः मेरे प्यारों बनना ही है तो सच्चा बौध्द बनो तब देखो कितने आनन्द की अनुभूति होती है | यूं मलेच्छों जैसे कार्य कर स्वयं को बौध्द कहना उस दया के सागर, करूण हृदय और जीवप्रेमी आर्य गौतम बुध्द का अपमान है…!!!

इति ओ३म् …!
जय आर्य बुध्द ! जय आर्यावर्त्त !!

पाखण्ड खंडन… वैदिक मण्डण… रिटर्न…..
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