Friday, September 16, 2016

क्या इस्लाम में कुछ ऐसा है जो मुसलमानों को अराष्ट्रीय बनाता है ? बल्कान, तुर्की, अफगानिस्तान, चीन के...

क्या इस्लाम में कुछ ऐसा है जो मुसलमानों को अराष्ट्रीय बनाता है ? बल्कान, तुर्की, अफगानिस्तान, चीन के प्रान्त सिंक्यांग, ईराक, सीरिया, कश्मीर की लड़ाई में विश्व के अनेकों देशों के मुसलमानों की भागीदारी से स्पष्ट हो ही जाता है कि इस्लाम में वाकई कुछ ऐसा है जो मुसलमानों को अराष्ट्रीय बनाता है।
यहाँ कुछ सामायिक प्रश्न मेरे मन में उठ रहे हैं। मैं उन्हें आप तक पहुँचाना चाहता हूँ। लौकिक संस्कृत का शब्दशः परफैक्ट व्याकरण लिखने वाले पाणिनि का गांधार तालिबान का अफगानिस्तान किस कारण बना ? पाकिस्तान का रावलपिंडी { ये नाम स्वयं कहानी कह रहा है } जनपद, जहाँ का तक्षशिला विश्वविद्यालय संसार का पहला विश्वविद्यालय था। जहाँ आचार्य कौटिल्य, आचार्य जीवक जैसे लोग बेबीलोन, ग्रीस, सीरिया,चीन इत्यादि देशों से आये 10,500 छात्रों को वेद, भाषा, व्याकरण, दर्शन शास्त्र, औषध विज्ञान, शल्य चिकित्सा, धनुर्विद्या, राजनीति, युद्ध शास्त्र, खगोल विद्या, अंक गणित, संगीत, नृत्य इत्यादि विषयों की शिक्षा देते थे, रूप बदल कर जमातुद्दावा, हरकतुल अंसार का पाकिस्तान कैसे बन गया ?
बंगाल { बांग्ला देश } के नाम से विहित और सबको अपनी शीतल छांव देने वाली ढाकेश्वरी माँ का धाम ढाका उसके उपासकों के शत्रुओं का घर कैसे बन गया ? ईराक और सीरिया में फैले गरुण की उपासना करने वाले, यज्ञ करने वाले मूर्ति-पूजक यजदी नमाज़ भी पढ़ने वाले यजीदी बनने पर क्यों विवश हो गए ? क्यों आई.एस.आई.एस. के लोग उनका समूल-संहार कर रहे हैं ? बल्कि सदियों से क्यों उनका संहार किया जाता रहा है ?
सऊदी अरब, ईरान, ईराक, कज्जाकिस्तान, उज्बेकिस्तान, आइजरबैजान जैसे अनेकों देशों में भग्न मंदिर, यज्ञशालाएं किसकी हैं और उन्हें किसने बनाया था ? वो भग्न कैसे हो गयीं ? उन्हें बनाने वाले, वहां उपासना करने वाले लोग कहाँ गए ? कश्मीर जो तंत्र के आचार्यों का क्षेत्र था, जहाँ तंत्र-कुल के लोग आज भी अपने नाम के आगे कौल लगाते हैं तंत्र-विहीन, कुल-विहीन कैसे हो गया ? क्यों इन सारे क्षेत्र के लोगों में अपनी परंपरा, अपने कुल के प्रति द्वेष पैदा हो गया ?
अपने पूर्वजों, परम्पराओं, इतिहास के प्रति घृणा अर्थात आत्मघाती प्रवृत्ति कोई सामान्य बात नहीं है तो एक दो लोगों में नहीं बल्कि पूरे समाज में जन्मी कैसे ? कैसे इन क्षेत्रों के लोगों में एक ऐसे उत्स जिसकी भाषा भी वो नहीं जानते के प्रति लगाव कैसे जाग गया ? इन भिन्न-भिन्न देशों, भिन्न-भिन्न संस्कृतियों के लोगों ने एक ऐसी विदेशी आस्था, जिसने उनके पूर्वजों को भयानक पीड़ा दी, को स्वीकार क्यों किया ? इन देशों, समाजों के लोग अपने पूर्वजों की जगह अरब मूल से स्वयं को क्यों जोड़ने लगे ?
इन सारे प्रश्नों का केवल एक ही उत्तर है कि वहां के हिंदू धर्मान्तरित हो कर मुसलमान हो गए। इन ऐतिहासिक घटनाओं की तार्किक निष्पत्ति है कि “हिन्दुओं का धर्मान्तरण राष्ट्रांतरण है"। हिन्दुओं से किसी अन्य मत में स्थानांतरण राष्ट्रांतरण होता है और अन्य मतों से प्रति-धर्मान्तरण अर्थात शुद्धि राष्ट्र और देश को मजबूत करती है। हिन्दुओं का सबल होना भारत का सबल होना है। हिंदुओं की स्थिति का दुर्बल होना भारत को दुर्बल करता है।
तो साहब देशभक्त इसे कैसे स्वीकार करें ? देश के शरीर पर निकलते जा रहे फोड़ों का इलाज क्यों नहीं करें ? इनका इलाज प्रति-धर्मान्तरण अर्थात शुद्धि नहीं है तो क्या है ? ऐसे किसी भी कार्य का विरोध तो होगा ही होगा। हमें करोड़ों की संख्या का मानस बदलना है। अनेकों देशों में भूले-बिसरे, छूट गए बंधुओं की सुधि लेनी है अतः विरोधियों की हू-हू की सियार-ध्वनि तो तब तक होती ही रहेगी जब तक इस समस्या की सर्वतोभावेन चिकित्सा नहीं हो जाती। आख़िर जिस प्रक्रिया के कारण अफगानिस्तान, पाकिस्तान, बांग्लादेश भारत से अलग हुए थे, उसी प्रक्रिया के उलटने से वापस आएंगे। और इस बार पूरे समाज को बाहें फैला कर बिछड़े बंधुओं को गले लगाना है और भारत को तोड़ने वालों से निबटना, को निबटाना है।
तुफ़ैल चतुर्वेदी


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