वेद संस्कृत में ही क्यों ?
प्रश्न: किसी देश-भाषा में वेदों का प्रकाशन न करके संस्कृत में क्यों किया ?
उत्तर: जो किसी देश-भाषा में प्रकाश करता तो ईश्वर पक्षपाती हो जाता, क्योंकि जिस देश की भाषा में प्रकाश करता उनको सुगमता और विदेशियों को कठिनता वेदों के पढ़ने-पढ़ाने की होती। इसलिए संस्कृत ही में प्रकाश किया, जो किसी देश की भाषा नहीं। और वेद-भाषा अन्य सब भाषाओं का कारण है। उसी में वेदों का प्रकाश किया।
जैसे ईश्वर की पृथिवी आदि सृष्टि सब देश और देशवालों के लिए एकसी और सब शिल्पविद्या का कारण है। वेसे परमेश्वर की विद्या की भाषा भी एक सी होती चाहिए कि सब देशवालों को पढ़ने-पढ़ाने में तुल्य परिश्रम होने से ईश्वर पक्षपाती नहीं होता।
प्रश्न: वेद ईश्वरकृत हैं अन्यकृत नहीं, इसमें क्या प्रमाण हैं ?
उत्तर: जैसा ईश्वर पवित्र, सर्वविद्यावित्, शुद्धगुणकर्मस्वभाव, न्यायकारी, दयालु आदि गुणवाला है वैसे जिस पुस्तक में ईश्वर के गुण-कर्म-स्वभाव के अनुकूल कथन हो वह ईश्वरकृत, अन्य नहीं। और जिसमें सृष्टिक्रम, प्रत्यक्षादि प्रमाण, आप्तों के और पवित्रात्मा के व्यवहार से विरुद्ध कथन न हो वह ईश्वरोक्त। जैसा ईश्वर का निर्भ्रम ज्ञान वैसा जिस पुस्तक में भ्रान्तिरहित ज्ञान का प्रतिपादन हो, वह ईश्वरोक्त। जैसा परमेश्वर है और जैसा सृष्टिक्रम रखा है वैसा ही ईश्वर, सृष्टि, कार्य, कारण और जीव का प्रतिपादन जिस में होवे वह परमेश्वरोक्त पुस्तक होता है। और जो प्रत्यक्षादि प्रमाण विषयों से अविरुद्ध, शुद्धात्मा के स्वभाव से विरुद्ध न हो, इस प्रकार के वेद हैं। अन्य बाइबिल, कुरान आदि पुस्तकें नहीं। इसकी स्पष्ट व्याख्या बाइबिल और कुरान के प्रकरण में तेरहवें और चौदहवें समुल्लास में की जाएगी।
-महर्षि दयानन्द सरस्वती
सत्यार्थ प्रकाश के अनमोल वचन
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