परमेश्वर आदि ऋषियों का गुरु
जैसे जंगली मनुष्य सृष्टि को देखकर भी विद्वान् नहीं होते और जब उनको कोई शिक्षक मिल जाए तो विद्वान् हो जाते हैं, और अब भी किसी से पढ़े बिना कोई भी विद्वान् नहीं होता इस प्रकार परमात्मा उन आदि सृष्टि के ऋषियों को वेदविद्या न पढ़ाता और वे अन्यों को न पढ़ाते तो सब लोग अविद्वान् ही रह जाते। जैसे किसी के बालक को जन्म से एकान्त देश, अविद्वानों वा पशुओं के संग में रख देवें तो वह जैसा संग है वैसा ही हो जाएगा। इसका दृष्टान्त जंगली भील आदि हैं।
जबतक आर्यावर्त देश से शिक्षा नहीं गई थी तब तक मिश्र यूनान और यूरोप देश आदिस्थ मनुष्यों में कुछ भी विद्या नहीं हुई थी। और इंग्लैण्ड के कुलुम्बस आदि पुरुष अमेरिका में जब तक नहीं गए थे तब तक वे भी सहस्रों, लाखों, क्रोड़ों वर्षों से मूर्ख अर्थात् विद्याहीन थे। पुनः सुशिक्षा के पाने से विद्वान् हो गए हैं। वैसे ही परमात्मा से सृष्टि की आदि में विद्या शिक्षा की प्राप्ति से उत्तरोत्तर काल में विद्वान् होते आए।
जैसे वर्तमान समय में हम लोग अध्यापकों से पढ़ ही के विद्वान् होते हैं वैसे परमेश्वर सृष्टि के आरम्भ में उत्पन्न अग्नि आदि ऋषियों का गुरु अर्थात् पढ़ानेहारा है। क्योंकि जैसे जीव सुषुप्ति और प्रलय में ज्ञानरहित हो जाते हैं वैसे परमेश्वर नहीं होता। उसका ज्ञान नित्य है।
जो परमात्मा वेदों का प्रकाश न करे तो कोई कुछ भी न बना सके इसलिए वेद परमेश्वरोक्त हैं। इन्हीं के अनुसार सब लोगों को चलना चाहिए। और जो कोई किसी से पूछे कि तुम्हारा क्या मत है तो यही उत्तर देना कि हमारा मत वेद अर्थात् जो कुछ वेदों में कहा है हम उसको मानते हैं।
-महर्षि दयानन्द सरस्वती
सत्यार्थ प्रकाश के अनमोल वचन
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