Thursday, September 17, 2015

२८ भाद्रपद 13 सितम्बर 2015 😶 “ ईश्वरीय शक्ति! ” 🌞 🔥🔥ओ३म् यदाकूतात्...

२८ भाद्रपद 13 सितम्बर 2015 😶 “ ईश्वरीय शक्ति! ” 🌞 🔥🔥ओ३म् यदाकूतात् समसुस्त्रोद्धृदो वा मनसो वा संभृतं चक्षुषो वा। 🔥🔥 🍃🍂 तदनु प्रेत सुकृतामु लोकं यत्रअऋषयो जग्मु: प्रथमजा: पुराणा: ।। 🍂🍃 यजु:० १८ । ५८ । ऋषि:- विश्वकर्मा ।। देवता- अग्नि: ।। छन्द:- निचृदार्षीजगती।। शब्दार्थ- जो शक्ति-बिन्दु आत्मिक ईक्षण से, आत्मिक संकल्प से अच्छी तरह चुआ है, विनिपतित हुआ है और या तो ह्रदय से, बुद्धि से या मन से या आँख (आदि इन्द्रिय) से चुए हुए इसे तुमने सम्यक्त्या धारण कर लिया है तो इसे ही लेकर चल पड़ो, पीछे ही हो लो, इस तरह तुम उस श्रेष्ठ कर्मवालों के लोक को पहुँच जाओगे जहाँ, जिस लोक को तुमसे पहले उत्पत्र हुए पुराने ऋषि लोग पहुँचते रहे हैं। विनय:- उस लोक को उड़ने का, उस लोक में पहुँचने का मार्ग बड़ा सहज हो जाता है, यदि किसी तरह हमारी वैयक्तिक प्रकृति उस ओर झुक जाए, उस ओर प्रवृत्त हो जाए, उधर चलने लगे; हठयोग की भाषा में, यदि किसी तरह हमारी कुंडलिनी शक्ति का जागरण हो जाए, क्योंकि उस अवस्था में हम बरसाती हुई ईश्वरीय शक्ति के धारण करने के योग्य हो जाते हैं। तब हमें ईश्वरीय-शक्ति का बिन्दु मिल जाना पर्याप्त होता है। उस एक ही शक्ति-बिन्दु को लेकर हमारी वैयक्तिक प्रकृति (शक्ति) चल पड़ती है और हमें बड़ी आसानी से हमारे ध्येय तक पहुँचा देती है। प्रभु की दया होने पर यह शक्ति-बिंदु ‘आकूत’ से, आत्मिक ईक्षण व आत्मिक संकल्प से गिरता है। इस शक्ति-बिंदु का निपात अपनी आत्मा के आकूत से या बहुधा दूसरी किसी बलवान् महान् आत्मा (गुरु) के आकूत से हुआ करता है। यह शक्ति-निपात आकूत से आकर गुरु के ह्रदय से या मन से या आँख से प्रकट होता है। गुरु इस शक्ति को या तो अपने ह्रदय से शिष्य के ह्रदय में डालते हैं, या अपने मन से शिष्य के मन में, या कभी अपनी आँख से ही शिष्य की आँख में इसका संचार कर देते हैं। ऋषियों ने बताया है, आत्मा का निवास सुषुप्ति में ह्रदय में होता है, स्वप्न में मन में और जाग्रत् में दक्षिणाक्षि में होता है। जो हो, परमगुरु परमेश्वर की कृपा होने पर 'आकूत’ द्वारा नाना प्रकार से शक्ति का विनिपात हुआ करता है और अधिकारी आत्मा इसे अपने में अच्छी तरह धारण कर लेता है। धन्य हैं वे पुरुष जिन्हें कि भगवान् का ऐसा आशीर्वाद प्राप्त होता है। भाइयो! यदि तुम्हें कभी कोई शक्ति-निपात प्राप्त हुआ है और तुमने उसे संभृत कर लिया है तो तुम उसे ही लेकर चल पड़ो, नि:शंक होकर चल पड़ो। तब समझो तुम्हें साफ़-सीधा चौड़ा मार्ग मिल गया है। निश्चय से तुम अपने अभीष्ट लोक को पहुँच जाओगे, उस सुकृतों के लोक को, श्रेष्ठ कर्म वालो के लोक को पहुँच जाओगे जहाँ कि तुमसे पहले पैदा हुए पुराने सब ज्ञानी ऋषि लोग पहुँचते रहे हैं। 🍃🍂🍃🍂🍃🍂🍃🍂🍃🍂🍃🍂 ओ३म् का झंडा 🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩 ……………..ऊँचा रहे 🐚🐚🐚 वैदिक विनय से 🐚🐚🐚


from Tumblr http://ift.tt/1gtsspY
via IFTTT

No comments:

Post a Comment