Tuesday, September 22, 2015

13 घंटे · मैं श्रीराम और श्रीकृष्ण की पुत्री हूं, दासी नहीं! लेखिका: फरहाना ताज हम मंदिर में सवा...

13 घंटे · मैं श्रीराम और श्रीकृष्ण की पुत्री हूं, दासी नहीं! लेखिका: फरहाना ताज हम मंदिर में सवा रुपए का प्रसाद चढाकर भगवान से कुछ भी मांग लें और वह दे दे, ऐसा कदाचित संभव नहीं। अब यदि ऐसा न हो तो आप कहें कि फिर ईश्वर को दयालु क्यों कहा जाता है? हां ईश्वर दयालु हैं, क्योंकि उन्होंने हमें कर्म करने की आजादी दी है, दुनिया के सभी जीव कर्म करने में स्वतंत्र हैं। इससे बड़ी दया परमात्मा की और भला क्या होगी? लेकिन हम जैसा कर्म करते हैं हमें वैसा ही फल मिलता है यानी कर्म के बदले में फल हमें न न्यून और न अधिक, इसका मतलब यही है कि ईश्वर पूर्णरूपेण न्यायकारी है। अब कोई कहे कि फिर हमें भगवान की आराधना की जरूरत ही क्या? जरूरत है ताकि हम अपने मार्ग से न भटक जाएं और ईश्वर स्मरण से सतकर्म करने की प्रेरणा मिलती है। अब आप कहेंगे कि तो आप मूर्तिपूजा का भी समर्थन करने लगी। नहीं हम नहीं करते बुतपरस्ती का समर्थन। माना कि ईश्वर इस जग के कण-कण में व्याप्त है, लेकिन उसे मात्र प्रतीक रूप में किसी मूर्ति में मानकर किसी मंदिर में बैठा देना क्या हास्यास्पद नहीं है कि सारी कायनात के मालिक को झोंपडे का मालिक बना दिया। तो ईश्वर की आराधना कैसे करें? संध्या, ध्यान, स्मरण एवं भजनों से आराधना संभव है। अब देखिए कोई भी मरता है तो मरने के बाद उसके चित्र पर माला चढाई जाती है और देवताओं के मूर्ति पर भी माला चढाते हैं यानी देवता भी मरे हुए हैं, तभी तो उनकी मूर्ति पर माला चढाते हैं और यदि आप कहें कि उनकी तो प्राण-प्रतिष्ठा की जाती है, तो फिर मुर्दो को भी प्राण-प्रतिष्ठा करके उन्हें जीवित क्यों नहीं कर लेते? श्रीराम और श्रीकृष्ण भी परमात्मा की आराधना करते थे। गायत्री का जाप करते थे। ऐसा रामायण और महाभारत में लिखा है। श्रीराम और श्रीकृष्ण भगवान तो थे, लेकिन परमात्मा नहीं। परमेश्वर यानी ओंकार नहीं और भगवान किसे कहते हैं, जानते हो? संपूर्ण ऐश्वर्य, धर्म, यश, श्री, ज्ञान और वैराग्य इन छह का नाम भग है, जिनके पास इनमें से एक भी हो, वह भगवान कहलाता है। जैसे दया होने से दयावान वैसे ही भग होने से भगवान। यकीनन महाभारत में यही लिखा है: ऐश्वर्यस्व समग्रस्य धर्मस्य यशसश्श्रियः ज्ञान वैराग्ययोश्चैव षण्णां भाग इतिरणा। महाभारत 6.5.74 श्रीराम और श्रीकृष्ण मुझे भी प्रिय हैं, क्योंकि उनकी रगो में जिन ऋषियों का लहू दौडा करता था, वही लहू मेरे अंदर भी है। इसीलिए मैं उनके चित्र को घर में रखती हूं, अच्छी जगह रखती हूं, लेकिन पूजा नहीं करती वरन उनके चित्र को देखकर उनके गुणों को अपनाने की प्रेरणा लेती हूं। अब निष्कर्ष यही है कि मैं श्रीराम और श्रीकृष्ण की बेटी तो हूं, लेकिन अंधभक्ति की पुजारिन नहीं। पुजारन को दास यानी गुलाम भी कहा जाता है। अब आप निर्णय करें कि आप ईश्वर के गुलाम है या पुत्र और पुत्री हैं ईश्वर का एक नाम ऋग्वेद में अर्य भी है और मनुष्य ईश्वर पुत्र होने से ही आर्य कहलाता है।


from Tumblr http://ift.tt/1L3xSWV
via IFTTT

No comments:

Post a Comment