Tuesday, September 22, 2015

ईश न्याय द्रढ खरा अटल,वहां न रिश्वत घूस सफल।जिसने बेच दिया ईमान,करो नहीं उसका गुणगान।अनाचार बढता है...

ईश न्याय द्रढ खरा अटल,वहां न रिश्वत घूस सफल।जिसने बेच दिया ईमान,करो नहीं उसका गुणगान।अनाचार बढता है कब,सदाचार चुप रहता जब।अधिकारों का वह हकदार,जिसको कर्तव्यों से प्यार।अपना अपना करो सुधार,तभी मिटेगा भ्रष्टाचार।जब तक नहीं चरित्र विकास,तब तब कर्मकाण्ड उपहास।व्यसनों की लत जिसने डारी,अपने पैर कुल्हाडी मारी।पाण्डव पांच हमें स्वीकार,सौ कौरव धरती के भार।गंदे फूहड चित्र हटाओ,मां-बहनों की लाज बचाओ।शुभ अवसर का भोजन ठीक,म्रतक भोज है अशुभ अलीक।ईश्वर ने इंसान बनाया,ऊंच-नीच किसने उपजाया।शासक जहां चरित्र हीन,वहीं आपदा नित्य नवीन।शिक्षा समझा वही सफल,जो कर दे आचार विमल।ईश्वर तो है केवल एक,लेकिन उसके नाम अनेक।वही दिखाते सच्ची राह,जिन्हें न पद-पैसे की चाह।अपनी गलती आप सुधारे,अपनी प्रतिभा आप निखारें।अधिक कमायें अधिक उगायें,लेकिन बांट बांट कर खाएं।सही धर्म का सच्चा नारा,प्रेम एकता भाई-चारा।परहित सबसे ऊंचा कर्म,ममता समता मानव धर्म।संभाषण के गुण है तीन,वाणी सत्य,सरल,शालीन।सतयुग आयेगा कब,बहुमत चाहेगा जब।संकट हो या दु:ख महान,हर क्षण होठों पे मुस्कान।सुधरे व्यक्ति और परिवार,होगा तभी समाज सुधार।अहं प्रदर्शन झूठी शान,ये सब बचकाने अरमान।धन बल जन बल बुद्धि अपार,सदाचार बिन सब बेकार।यही सिद्धि का सच्चा मर्म,भाग्यवाद तज,करो सुकर्म।करो नही ऐसा व्यवहार,जो न स्वयंको हो स्वीकार।मदिरा-मांस तामसी भोजन,दूषित करते तन मन जीवन।नारी का असली श्रंगार,सादा जीवन उच्च विचार।नारी का सम्मान जहां है,संस्क्रति का उत्थान वहां हैं।सदगुण हैं सच्ची सम्पत्ति,दुर्गुण सबसे बडी विपत्ति।कथनी करनी भिन्न जहां है,धर्म नहीं पाखण्ड वहां है। व्रक्ष प्रदूषण-विष पी जाते,पर्यावरण पवित्र बनाते।लघु सेवा तरु हमसे लेते,अमित लाभ जीवन भर देते।जीव और वन से जीवन है,बस्ती का जीवन उपवन है।व्रक्ष और हितकारी सन्त,है इनके उपकार अनन्त।सात्विक भोजन जो करते हैं,रोग सदा उनसे डरते हैं।धन बल जन बल बुद्धि अपार,सदाचार बिन सब बेकार।धर्म क्षेत्र में पूज्य वही नर,त्यागे लोभ स्वार्थ आडम्बर।अगर रोकनी है बरबादी,बंद करो खर्चीली शादी।घर में टंगे हुए जो चित्र,घोषित करते व्यक्ति चरित्र।गंदे फूहड गीत न गाओ,मर्यादा समझो,शरमाओ।चाटुकार को जिसने पाला,उस नेता का पिटा दिवाला।जो उपहास विरोध पचाते,वे ही नया कार्य कर पाते।बनें युवक सज्जन,शालीन,दें समाज को दिशा नवीन।ईश्वर बंद नही है मठ में,वह तो व्यापक है घट घट में।खोजें सभी जगह अच्छाई,ऐसी द्रष्टि सदा सुखदाई।जैसी करनी वैसा फल,आज नहीं तो निश्चय कल।जो करता है आत्मसुधार,मिलता उसको ही प्रभु प्यार।जुआ खेलने का यह फल,रोते फिरें युधिष्ठिर नल।जो न कर सके जन कल्याण,उस नर से अच्छा पाषाण।पशु बलि,झाड फूंक जंजाल,इनसे बचे वही खुशहाल।


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