Thursday, September 24, 2015

८ आश्विन 24 सितम्बर 2015 😶 “ विविध पताकाएँ ! ” 🌞 🔥🔥ओ३म् गायन्ति त्वा...

८ आश्विन 24 सितम्बर 2015 😶 “ विविध पताकाएँ ! ” 🌞 🔥🔥ओ३म् गायन्ति त्वा गायत्रिणोSर्चन्त्यर्कमर्किण: । 🔥🔥 🍃🍂 ब्रह्माणस्त्वा शतक्रत उद्वंशमिव येमिरे ।। 🍂🍃 ऋ० १ । १० । १ ऋषि:- मधुच्छन्दा: ।। देवता- इन्द्र: ।। छन्द:- विराडनुष्टुप् ।। शब्दार्थ- साम-गान करनेवाले तेरे ही गीत गाते हैं मन्त्रों, ऋचाओं से स्तुति करने वाले तुझ देव का ही पूजन करते हैं, एवं, सब ज्ञानी लोग हे असंख्य प्रकार की प्रज्ञा व कर्मवाले! तुझे ही, तेरी महिमा को ही ध्वजादण्ड की तरह ऊँचा उठाते हैं। विनय:- हे भगवन्! जिसने जिस रूप में तुम्हारी महिमा का अनुभव किया होता है वह उसी रूप में तुम्हारा वर्णन करता है और उसी रूप में तुम्हें देखता है। तुम तो शतक्रतु हो, तुम्हारा अनन्त ज्ञान, कर्म और गुण संसार में सैंकड़ों प्रकार से प्रकट हो रहा है, अनुभूत हो रहा है, अतः प्रत्येक मनुष्य तेरा भजन अपने-अपने अनुभव के अनुसार भित्र-भित्र तरीके से कर रहा है। भित्र-भित्र प्रकार से तुझे अनुभव कर भित्र-भित्र प्रकार से ही सब कोई तुझसे मिलने का-तेरी ओर पहुँचने का-यत्न कर रहा है। कोई गा-गाकर तुझसे अपनी समीपता करना चाहता है, तो कोई इसके लिए स्तुति-पाठ करता है, या ध्यान करता है। यह सब शतक्रतो! अपने-अपने तरीके से तेरी ही अनुभूति का प्रकाशन करना है, अपने-अपने तरीके से तेरे ही झण्डे को ऊँचा करना है। अरे, ये नाना मत-मतान्तरवाले, ये नाना तरह से उपासना करनेवाले इन सब तरीकों में तेरी ही महिमा को, तेरे ही प्रचार को क्यों नहीं अनुभव करते? ओह, तू तो इन सबमें है। सचमुच, मुग्ध करनेवाले साम के दिव्य गायनों में तू है, गन्धर्वों की वाणी में तू है और मस्ती से गाई जाती हुई भक्त की सुरीली तानों में तू है। उपासक के अनवरत जप में तू है, सच्चे व्याख्याता के व्याख्यान में तू है और अडोल आसन लगाकर बैठे योगी के एकतान ध्यान में तू है। सब मन्त्रों में, सब सन्तों की वाणी में, सब प्रकार के भजनों में तू है, क्योंकि इन सभी साधनों से तेरा ही भक्तवंश बढ़ता है, जगत् में तेरी भक्ति का प्रसार होता है। ये सब भजन-साधन और कुछ नहीं हैं, ये सब नाना प्रकार से उठाये गये तेरी महिमा के रंग-बिरंगे झण्डे हैं। अहा! देखने योग्य दृश्य है। संसार के सब ज्ञानी पुरुष तेरे सम्मान के लिए, तेरी महिमा को ऊँचा उठाने के लिए इन अपनी विविध प्रकार की भजनरूपी तरह-तरह की ध्वजाओं को ऊँचे उठाये हुए चल रहे हैं; सभी ज्ञानी पुरुष तेरे सम्मान में अपने-अपने ध्वजादण्ड उठाये चले जा रहे हैं। आहा, यह क्या ही दर्शनीय दृश्य है। 🍃🍂🍃🍂🍃🍂🍃🍂🍃🍂🍃🍂 ओ३म् का झंडा 🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩 ……………..ऊँचा रहे 🐚🐚🐚 वैदिक विनय से 🐚🐚🐚


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