Thursday, October 29, 2015

१४ कार्तिक 30 अक्टूबर 2015 😶 “ परमा प्रिया सच्चिदानन्दरूपिणी परमात्मा देवता !...

१४ कार्तिक 30 अक्टूबर 2015

😶 “ परमा प्रिया सच्चिदानन्दरूपिणी परमात्मा देवता ! ” 🌞

🔥🔥 ओ३म् बालादेकमणीयस्कमुतैकं नेव दृश्यते। 🔥🔥
🍃🍂 तत: परिष्वजीयसी देवता सा मम प्रिया ।। 🍂🍃

अथर्व० १० ।८। २५

ऋषि:- कुत्स: ।। देवता- आत्मा: ।। छन्द:- अनुष्टुप्।।

शब्दार्थ- एक बाल से भी बहुत अधिक सूक्ष्म-अणु है और एक नहीं की तरह दीखता है। उससे परे उसे आलिंगन किये हुए, उसे व्यापे हुए जो देवता है वह मुझे प्यारी है।

विनय:- मुझमें प्रेमशक्ति किस प्रयोजन के लिए है? मेरे प्रेम का असली भाजन कौन है? यह खोजता हुआ जब मैं संसार को देखता हूँ तो इस संसार में केवल तीन तत्व ही पाता हूँ, तीन तत्वों में ही यह सब कुछ समाया हुआ देखता हूँ। इनमें से पहला तत्व बाल से भी अधिक सूक्ष्म है। बाल के अग्रभाग के सैंकड़ों टुकड़े करते जाएँ तो अन्त में जो अविभाज्य टुकड़ा बचे उस अणु, परम अणुरूप का यह तत्व है। प्रकृति के इन्हीं परमाणुओं से यह सब दृश्य जगत् बना है। इससे भी सूक्ष्म दूसरा तत्व है, पर इसकी सूक्ष्मता दूसरे प्रकार की है; इसकी सूक्ष्मता की किसी भौतिक वस्तु से तुलना नहीं की जा सकती। यह तत्व ऐसा अद्भुत है कि यह नहीं के बराबर है। यह है, किन्तु नहीं-जैसा है। इस दूसरे तत्व से परे और इससे सूक्ष्म और इसे सब ओर से आलिंगन किये हुए, व्यापे हुए, एक तीसरा तत्त्व है, तीसरी देवता है। यही देवता मुझे प्रिय है। पहली प्रकृति देवता जड़ और निरानन्द होने के कारण मुझे प्रिय नहीं हो सकती। दूसरी वस्तु मैं ही हूँ, मेरी आत्मा है। मैं तो स्वयं देखनेवाला हूँ, तो मैं कैसे दीखूँगा? अतः मैं नहीं के बराबर हूँ। मैं तो प्रेम करनेवाला हूँ, अतः प्रेम का विषय नहीं बन सकता। अतएव मेरे सिवाय मेरे सामने दो ही वस्तुएँ रह जाती हैं, यह प्रकृति और वह सच्चिदानन्दरूपिणी परमात्म-देवता। इनमें से चित्स्वरूप मुझे यह चैतन्य और आनन्द से शून्य प्रकृति कैसे प्रिय हो सकती है? मेरा प्यारा तो स्वभावतः वह दूसरा देवता है जोकि मेरी आत्मा की आत्मा है, जोकि मेरी आत्मा से परिष्वक्त हुआ इसमें सदा व्यापा हुआ है और जो मुझे आनन्द दे सकता है। मैं तो स्पष्ट देख रहा हूँ कि प्रकृति के समझे जानेवाले ये बड़े-से-बड़े ऐष्वर्य तथा प्रकृति के दिव्य-से-दिव्य भोग दे सकनेवाले ये अनगिनत पदार्थ सर्वथा आनन्द और ज्ञान-प्रकाश से शून्य हैं, अतः मैं तो प्रकृति से हटके अपने उस प्यारे परमात्मा की ओर दौड़ता हूँ। मैं स्पष्ट देखता हूँ कि अपने प्रेम द्वारा उसे पा लेने पर मेरी भटकती हुई प्रेम-शक्ति अपने प्रयोजन को पा लेगी, उसे पा लेने पर मेरा सम्पूर्ण प्रेम चरितार्थ और कृतकृत्य हो जाएगा।

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ओ३म् का झंडा 🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩
……………..ऊँचा रहे

🐚🐚🐚 वैदिक विनय से 🐚🐚🐚


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