Monday, October 19, 2015

राष्ट्रद्रोह होना चाहिये गौ—माँस भक्षण महान् भारत की आधारभूत प्रभा,बल, ऐश्वर्य एवं ओज की अजस्र...

राष्ट्रद्रोह होना चाहिये गौ—माँस भक्षण
महान् भारत की आधारभूत प्रभा,बल, ऐश्वर्य एवं ओज की अजस्र प्रवाहिका गाय
है इसीलिये वेदों में  से प्रत्येक वेद से लेकर ब्राह्मणों, आरण्यकों,
उपनिषदों, स्मृतियों, पुराणों आदि धर्मशास्त्रों निबन्ध में ही नहीं
अपितु कालिदास, बाणबट्ट, भास, भामह, प्रभृति कवियों ने भी गाय के महत्त्व
को दर्शाया है। परन्तु वर्तमान में हमारी सत्य सनातन आर्य संस्कृति के
नाशक एवं विरोधी, हिन्दू नामधेय आर्यमुखादर्शी दुष्ट सेक्यूलर जमात के
कीड़े एवं धर्मान्तरण के नाम पर राष्ट्रान्तरण करने वाली गुण्डी गैंग के
लोग आर्यों की जीवनदायिनी माता को सदा सदा के लिये समाप्त करने के लिये
एकत्रित हुये हैं। एवं इनसे हम सभी आर्यवीरों को संग्राम करते हुये विजय
प्राप्त करनी होगी।
आर्य वीरों के विरूद्ध एक षडयन्त्र के रूप में क्रियान्वित इस षडयन्त्र
को समझने से पूर्व ये आवश्यक है कि हम भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति में
गाय के आधारभूत तथ्यों को सभी के समक्ष प्रकट करें। एवं जाने कि भारत में
माँस भक्षण ही वर्जित रहा है तो गौ का माँस खाना कैसे सम्भव होगा एवं
कुतर्कियों के लिये वेदादि से प्रमाण देना आवश्यक है ताकि ऐसे सम्प्रदाय
के लोग जिनकी उत्पत्ति तो इस महान् भारत राष्ट्र की भूमि पर हुईहै किन्तु
वे न केवल वेद विरोधी हैं अपितु समय आने पर सत्य सनातन आर्य विचारधारा को
समाप्त करने के लिये प्रयत्नशील भी होंगे।
यजुर्वेद का प्रथम मन्त्र कहता है—
इषे त्वोर्ज्जे त्वा वायव स्थ देवो व: सविता प्रार्पयतु श्रेष्ठतमाय
कर्मण5आप्यायध्वघ्न्या5इन्द्राय भागं प्रजावतीरनमीवा5अयक्ष्मामा व
स्तेन5ईशत माघश ँसो ध्रुवा5अस्मिन् गोपतौ स्यात बह्वीर्यजमानस्य पशून
पाहि। यजुर्वेद 1.1
इस मन्त्र में ऋषि का स्पष्ट दर्शन है कि ईश्वर से अपेक्षा की जाय कि
हमें सम्पत्ति के रूप में गाय, अश्व आदि पशु प्राप्त होवें अब यदि गाय
प्राप्त होनी है तो वहाँ उसका माँस भक्षण करना तो उद्देश्य नहीं दिखाई
देता। पुन: इसी मन्त्र में गौ के विशेषण रूप में एक शब्द आया है अघ्न्या
जिसका सीधा सा अर्थ है जो कि अवध्य है।
पुन: यजुर्वेद के 22 वें अध्याय का 22वाँ मन्त्र है—
ओ3म् ब्रह्मन् ब्राह्मणो ब्रह्मवर्चसी जायतामा राष्ट्रे राजन्य:
शूर5इषव्यो5तिव्याधी महारथो जायतों दोग्ध्री धेनुर्वेाढान् ड्वानाशु:
सप्ति: पुरन्धिर्योषा जिष्णू रथेष्ठा: सभेयो युवास्य यजमानस्य वीरो
जायतां निकामे निकामे न: पर्जन्यो वर्षतु फलवत्यो न5ओषधय: पच्यन्तां
योगक्षेमो न: कल्पताम्।। यजुर्वेद 22.22
इस मन्त्र में ऋषि ने ईश्वर से प्रार्थना रूप में मन्त्रदर्शन किये हैंकि
हे ईश्वर! हमारे यहाँ सभी कल्याणकारी हो युवा वीर एवं ज्ञान सम्पन्न हों,
स्त्रियों धर्म की रक्षिणी हों, गाय भरपूर दुग्ध देने वाली एवं बैल
भारवहन करने हेतु स्वस्थ एवं बलिष्ठो हों आदि । यहाँ यदि गौमाँस भक्षण ही
करना होता तो मन्त्र दोग्ध्री शब्द के स्थान पर निश्चित ही माँस
बढ़ानेवाला कोईशब्द प्रयोग होता। किन्तु यहाँ दुग्ध प्रदायिकाओं गौ को
महत्त्व दिया है।
माता रुद्राणां दुहितावसूनां स्वसादित्यानाममृतस्य नाभि:। प्र नु वोचं
चिकितुषे जनाय मा गामनागामदितिं वधिष्ट।। ऋग्वेद 8.101.15
मन्त्र कहता है कि जो रूद्रों की माता, वसुओं की पुत्री एवं आदित्यों की
बहन है ऐसी ऐसी अदिति स्वरूपा गाय सर्वथा अवध्य है। अवध्य है अवध्य है
अवध्य है।वेद के इन प्रमाणों से स्पष्ट रूप से सिद्ध हो जाता है कि
भारतीय मेधा, प्रज्ञा व आध्यात्मिक एवं शैक्षिक चिन्तन के आधारभूत ज्ञान
कोश वेद हैं एवं वेदों में न तो गाय के माँस खाने का विधान हैं एवं न ही
इसके विरूद्ध कदापि विचार नहीं किया जाना चाहिये।
प्रश्न है कि इतने सकारात्मक एवं स्पष्ट प्रमाणों के होने के उपरान्त  भी
क्यों वर्तमान में प्रचार माध्यमों एवं अन्यान्य प्रचलित एवं प्रसिद्ध
भाण्डों द्वारा गौमाँस भक्षण को व्यक्तिगत अधिकार  मानते हुये उस पर
प्रतिबन्ध को होने अथवा न होने पर चर्चा करवाई जा रही है।
समाधान है कि हमारे महान् भारत राष्ट्र में किसी को भी कुछ भी बोलने का
अधिकार है। भारतीय न्याय व्यवस्थ में कारागृह को विकल्प माना है एवं
कारागृह मुक्ति को अधिकार ऐसी स्वस्थ एवं सर्वश्रेष्ठ न्याय व्यवस्था  का
कुछ लोग अनावश्यक दुरूपयोग करते हुये। इस  अत्यन्त संवेदनशील एवं ज्वलशील
विषयवस्तु की आढ़ में देश में द्वेष का विषवपन कर रहे हैं।
अब देखिये भारतीय रजतपट्ट उद्येाग में कार्मिक रूप से प्रविष्ट भाण्ड
जिन्होंने अपनी शिक्षा दीक्षा म्लेच्छों के देश में प्राप्त की है। वे
जिन्होंने भारतीय संस्कृति, सभ्यता, परम्परा को न तो जाना है न ही कभी
जानना चाहा है। वे भी पता नहीं किस धारा में बहते हुये बक देेते हैं कि
गौ माँस खाना है ये उनका व्यक्तिगत अधिकार क्षेत्र का विषय है। हन्त
दुर्भाग्य कि वे लोग जो आर्य जाति के मुखौटे एवं नाम को धारण कर रहे हैं।
परन्तु स्वयं को प्रतिष्ठित करने हेतु अथवा प्रचार तन्त्रों से विपुल
धनराशि की प्राप्त्योपरान्त विक्षिप्त की भाँति अपनी ही माँ को खाने के
लिये लालायित हो रहे हैं। इसे विकृत मानसिकता की पराकाष्ठा ही कहा
जायेगा। अथवा यशोधनलोलुपता के कारण। पर ये स्पष्ट रूप से समाज में
विद्वेष के बीज बोने के समान है।
यूरोप के यहूदी दस्यु  कोलम्बस का जब अमेरीका की भूमि पर अशुभ पद प्रहार
हुआ तो उसने वहाँ के ऐसे ही एक दुधारू क्षेत्रीय पशु को मारना प्रारम्भ
किया परिणाम हुआ कि वहाँ की वह जाति ही समाप्त हो गई एवं वहाँ के मूल
निवासी भी उसी के साथ समाप्त हो गये। अब उनमें से कुछ एक को ये गोरी
चमड़ी वाले रक्त पिपासु नर पिशाच बचाए हुये हैं एवं स्वयं को बड़ा ही
मानवों का हितकर्त्ता सिद्ध कर रहे हैं।
 ये लोग विश्व से आर्य जाति केा समाप्त करने का संकल्प लिये हुये हैं।
एवं येन केन प्रकारेण आर्यसभ्यता को समाप्त करने के लिये प्रयत्नशील हैं।
इसी हठधर्मिता के कारण यहाँ भारत में एक व्यवस्थित षडयन्त्र के अनुसार
चलते हुये गाय को समाप्त किया जा रहा है। यह एक भीषण अपराध है मानवता के
प्रति किया जाने वाला अपराध। कैसा आश्चर्य है कुत्ते पालने वाला पढ़ा
लिखा जानवरों को बचाने वाला पशु प्रेमी एवं गाय को माता कहने वाला
साम्प्रदायिक। समाज के साथ किया जाने वाला घोर धोखा। हमें इससे बचना
होगा। एवं गाय को कटने से बचाना होगा। गौ हत्या को राष्ट्रीय अपराध घोषित
किया जाना चाहिये। ऐसा हमारा सभ्यजनों से निवेदन है। यदि आज इस प्रकार का
कोई अनुशासित प्रतिक्रिया नहीं की गई तो निश्चय ही भविष्य के 50—60 वर्षो
में या तो हमारा अस्तित्व ही नहीं होगा। अन्यथा कुछ विभत्स घटित होगा।
सर्वे भवन्तु सुखिन:
डॉ.दिलीप कुमार नाथाणी
07737050671
डॉ.दिलीप कुमार नाथाणी


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