Thursday, October 29, 2015

रामायण से (१६) प्रातकाल सरऊ करि मज्जन । बैठहिं सभाँ संग द्विज सज्जन ॥ बेद पुरान बसिष्ट बखानहिं...

रामायण से (१६)
प्रातकाल सरऊ करि मज्जन ।
बैठहिं सभाँ संग द्विज सज्जन ॥
बेद पुरान बसिष्ट बखानहिं ।
सुनहिं राम जद्यपि सब जानहिं ॥
अर्थात्— प्रात: काल सरयू जी में स्नान करके ब्राह्मणों और सज्जनों के साथ सभा में बैठते हैं ।बशिष्ठ जी वेद और पुराणों की कथाएँ वर्णन करते हैं और श्रीराम जी सुनते हैं यद्यपि वे सब जानते हैं ।
#ध्यान दें—आजकल के प्रचलित पुराणों के बारे में कहा जाता है कि इन्हें द्वापरयुग के अंत में व्यासमुनि ने लिखा है । अब यह तो हो नहीं सकता है कि द्वापरयुग के अंत में लिखे गए पुराणों का व्याख्यान बशिष्ठ मुनि त्रेतायुग में कर रहे हों ।क्योंकि त्रेतायुग पहले आता है और द्वापरयुग बाद में ।
बशिष्ठ मुनि वेदका उपदेश करते हुए पुराण ( अर्थात् इतिहास ) का मेल दिखाया करते थे ।
भगवान राम यह वैदिक उपदेश पहले से जानते थे क्योंकि ब्रह्मचर्याश्रम में वे बशिष्ठ मुनि से पढ़ चुके थे ।तथापि वेद का स्वाध्याय नित्य-प्रति करना चाहिए इसलिए वे वेद का उपदेश नित्य-प्रति बशिष्ठ मुनि से सुना करते थे ।


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