Saturday, October 24, 2015

यजुर्वेद ८-४६ (8-46) विश्व॑कर्मन्ह॒विषा॒ वर्ध॑नेन त्रा॒तार॒मिन्द्र॑मकृणोरव॒ध्यम् । तस्मै॒ विशः॒...

यजुर्वेद ८-४६ (8-46)

विश्व॑कर्मन्ह॒विषा॒ वर्ध॑नेन त्रा॒तार॒मिन्द्र॑मकृणोरव॒ध्यम् । तस्मै॒ विशः॒ सम॑नमन्त पू॒र्वीर॒यमु॒ग्रो वि॒हव्यो॒ यथास॑त् । उ॑पया॒मगृ॑हीतो॒ सीन्द्रा॑य त्वा वि॒श्वक॑र्मणे ऽए॒ष ते॒ योनि॒रिन्द्रा॑य त्वा वि॒श्वक॑र्मणे ॥

भावार्थ:- इस संसार में मनुष्य सब जगत् की रक्षा करनेवाले ईश्वर तथा सभाध्यक्ष को न भूले, किन्तु उनकी अनुमति में सब कोई अपना-अपना वर्ताव रक्खे।

प्रजा के विरोध से कोई राजा भी अच्छी ऋद्धि को नहीं पहुँचता और ईश्वर वा राजा के बिना प्रजाजन धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के सिद्ध करनेवाले काम भी नहीं कर सकते, इससे प्रजाजन और राजा ईश्वर का आश्रय कर एक-दूसरे के उपकार में धर्म के साथ अपना वर्ताव रखें।।

Pandit Lekhram Vedic Mission

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