Friday, October 23, 2015

एक ठग्गू की आत्मकथा :- मैं ठग हूं एक ऐसा ठग जो भोले भाले व्यक्तियो से लेकर उच्च शिक्षित व्यक्तियो...

एक ठग्गू की आत्मकथा :-
मैं ठग हूं एक ऐसा ठग जो भोले भाले व्यक्तियो से लेकर उच्च शिक्षित व्यक्तियो को भविष्य बखान के नाम पर ठग कर लूटता हूं। और मैं ऐसा इसलिए कर पाता हूं क्योंकि मेरे पास आने वाले व्यक्ति अन्धविश्वासी है पुरुषार्थ से रहित है भाग्यवादी होकर किस्मत के भरोसे बैठे रहते है और सबसे बङी बात कि वह अपनी बुद्धि का प्रयोग ही नहीं करते है। इसलिए मैं और मेरे जैसे अन्य ठग उन्हे सूदूर अन्तरिक्ष मे स्थित गैस के गोले से डराकर उन्हे सुनहरे भविष्य के सपने दिखाकर मूर्ख बनाता हूं और टुल्लेबाजी के नाम पर उनकी जेब खाली कर उन्हे हंसते हुए घर भेज देता हूं। वास्तव मे मैं यह कार्य स्वयं नहीं करता हूं मुझे तो इसकी आवश्यक्ता ही नहीं पङती है। बस अपने नाम के आगे एक बेहद चमत्कारी शब्द को लिखने की देर थी और वह था “ज्योतिषी"। इस शब्द को नाम के साथ लिखते ही इसने अपना चमत्कार दिखाना प्रारम्भ कर दिया। इस शब्द ने मुझे फर्श से अर्श पर पहुंचा दिया जिसकी मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी। एक डाक्टर वकील इन्जीनीयर आदि बनने के लिए वर्षो लग जाते है बहुत परिश्रम करना पङता है लेकिन एक ज्योतिषी ऊर्फ ठग बनना इतना सरल होता है यह मैंने नहीं सोचा था। अन्य किसी भी प्रकार का धन्धा करना सरल कार्य नहीं होता और सभी मे लाभ हानि दोनो की सम्भावना बनी रहती है लेकिन मेरा यकीन मानिए मेरे ठगी के धन्धे मे मंदी कभी नहीं आती है बल्कि मंदी मे मेरा धन्धा और चमकता है। उपर से निवेश न के बराबर ही है और आमदनी का कोई हिसाब नहीं होता है। मेहनत भी अधिक नहीं करनी पङ्ती है - बेअक्क्ल व्यक्ति को मूर्ख ही तो बनाना होता है जो बहुत सरल कार्य होता है। और व्यक्ति का दिमाग पहले से ही बन्द होने के कारण यह कार्य बङी सहजता से हो जाता है। अन्य किसी धन्धे मे आपको ग्राहक ढूंढने से नहीं मिलते और मेरे ठगी के धन्धे के तो कहने ही क्या - बस ज्योतिषी शब्द लिखा हुआ होना चाहिए आपको हिमालय पर्वत पर भी ढूंढ लिया जाएगा। दर असल मैं पहले शौकिया तौर पर ठग बना था उस समय मुझे इस बात का एहसास ही नहीं था कि मैं एक ठग बनने की राह पर हूं और एक दिन प्रतिष्ठित ठग बन जाऊंगा। मैं तो ऐसे ही अपने मित्रो रिशतेदारो व अन्य व्यक्तियो की कुंडलियां देख कर ठगता रहता है उनके बारे मे मुझे पता तो होता ही था इसलिए मेरी अधिकतर टुल्लेबाजी सही होती थी। इस तरह से मेरा प्रचार होता गया नये ग्राहक आने लगे मुझे पंडित जी ज्योतिषी जी गुरुजी कहते हुए सम्मान देते हुए धन की बरसात करने लगे और इस तरह मैं एक मशहूर ठग बन गया।
इसी तरह से ठगी करते दिन बीत रहे थे दिन प्रतिदिन धन्धा फल फूल रहा था। और अपने व्यापार को बढाने की चाह किसे नहीं होती है मुझे भी थी इसी उद्देश्य से मैंने भी प्रचार प्रसार करना शुरु कर दिया जिसमे मैं बहुत सफल भी हुआ पर अचानक एक दिन स्थिति कुछ यूं बदली कि बस पूछो ही मत। कुछ व्यक्तियो ने मेरी ठगंत विद्या अर्थात ज्योतिष पर ही प्रश्नचिन्ह लगा दिया वह भी ऐसे प्रश्न जिन्हे मैंने न कभी देखा था न ही सुना था तो पैरो तले जमीन खिसकती सी प्रतीत हुई। फिर क्या था अपने ठगी के धन्धे को तो बचाना ही था इसलिए लग गया - पहले तो मुझे लगा कि कोई ऐसे ही थोङी बहुत अक्कल वाले व्यक्ति होंगे जिन्हे कुछ अता पता नहीं होगा और हो भी तो ज्यादा नहीं होगा इसलिए अतीत की भांति इन्हे भी यूं निपटा दूंगा। यही विचार कर मैं अपने ठगी के धन्धे को बचाने मे लग गया। चर्चा चलती रही तर्क वितर्क होते रहे पर आश्चर्य कि मेरी एक न चली और कोई दांव पैंतरे जो आज तक मेरे जैसे ठग्गू प्रयोग करते रहे थे सब बेकार होकर धाराशायी हो गए। यहां तक कि मेरा गाली-ज्ञान भी किसी काम न आया। फिर मैंने अनेक ठग्गुओ को एकत्र किया और पूरे दम खम और दल बल सहित चर्चा-ए-जंग मे कूद पङा। बहुत तर्क वितर्क हुआ बेतुकि बाते की खूब गाली-ज्ञान भी दिया पर बात नहीं बनी। धीरे धीरे मेरी समझ मे भी आने लगा कि दाल नहीं गलने वाली इनसे निपटना इतना आसान कार्य नहीं है ये इस विषय के ही धुरंधर है और मैं तो इनके आस पास भी नहीं हूं यह विचार कर मैंने चर्चा ही छोड़ दी। आखिर है तो ठगी का धन्धा ही जो मूर्खो के सिर पर चलता ही रहेगा उन्हे तो अक्कल आने से रही तो उनकी कभी कमी भी नहीं होगी ऊपर से ठगी के अनेक तरीके मुझे पता है साथ ही मेरे अन्य साथी कुछ न कुछ नया पैंतरा निकालते ही रहते है इसलिए मैं चुपचाप किनारे बैठ कर मेरे ही मूर्ख ग्राहको द्वारा मेरे ठगी के धन्धे को बचाए जाने को देखता रहता हूं। जब तक वह मेरे ठगी के धन्धे को बचाते रहेगें व गुरुजी पंडित जी कहते हुए ठगे जाने के लिए अपनी कुंडली दिखाते रहेगें तब तक मेरे बुरे दिन नहीं आने वाले है। इसलिए इस ओर से मैं निश्चिंत तो अवश्य हूं लेकिन साथ ही कहीं न कहीं अन्तर मन मे विचार कर लेता हूं कि कहीं मेरे मेरे किसी मूर्ख ग्राहक को अक्कल न आ जाए। इसलिए मेरे धन्धे के खिलाफ बोलने वालो पर मे कङी नजर रखता हूं जिस से कि यदि किसी को कभी गलती से अक्कल आ भी गई और प्रश्न कर लिया तो उतर के रूप मे मेरे पास ऐसा कुछ अवश्य हो - हालांकि मूर्खता की मूर्छा से जाग चुके व्यक्ति के लिए भविष्य मे कोई उचित उतर होगा ही नहीं - लेकिन फिर भी मेरा यह प्रयास रहता है कि कुछ ऐसा उतर अवश्य हो जिसे सुनकर व्यक्ति मे बोगस ज्योतिष के प्रति अविश्वास की भावना न उत्पन्न हो। तो मेरी यह पूरी कोशिश रहती है कि अपने ठगी के धन्धे को भगवान धर्म आदि से जोङकर व्यक्ति की आस्था श्रद्धा और विश्वास का भरपूर लाभ उठाऊं जिससे मैं हमेशा से सफल रहा हूं। और व्यक्ति की मूर्खता का जितना लाभ उठाकर अपने ठगी के धन्धे को चमका सकता हूं उतना करता हूं। तो आप भी मेरे ठगी के धन्धे से जुङकर मुझे अमीर बनाईए - स्वयं कंगाल हो कर। आपकी यही नियति है क्योंकि - ठग और मूर्ख एक दूसरे के लिए ही बने होते है।


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