Tuesday, October 20, 2015

Rajinder Kumar Vedic सामवेद: प्रथमाध्याये तृतीया दशति: ——–भावार्थ : राजिंदर...

Rajinder Kumar Vedic


सामवेद: प्रथमाध्याये तृतीया दशति:
——–भावार्थ : राजिंदर वैदिक
मन्त्र:21 ,“ वह परमात्मा तुम्हारे उपासना योग यज्ञ अभ्यास रूपी ज्ञान यज्ञो को अतिशयति बढ़ाता है. अर्थार्त अभ्यास से यह बढ़ता है, बंधू तुल्य सहायक है, इस बलवान तेजोमय परमात्मा को तुम अच्छे प्रकार उपासित करो.
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मंत्र:22 :,” उपासना योग यज्ञ के अभ्यास में तेजोमय , न्यायकारी , वज्रतुल्य परमात्मा अपने तीक्ष्ण तेज से सम्पूर्ण दुष्ट हिंसक शत्रु (पांच विषय+ काम, क्रोध, लोभ, मोह, ईर्ष्या, राग, द्वेष, अंहकार आदि) को निग्रहित करता है.(अर्थार्त साधक के अभ्यास के अनुसार इनकी मात्रा कम करते करते समाप्त कर देता है.) और वही हमारे इस शरीर रूपी राज्य में हमारे लिए धन आदि (अन्न से उत्पन्न वीर्य, वीर्य से तेज, तेज से ओज , ओज से सोम आदि) को बाटता है.
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मंत्र: 23 ;“हे पूजनीय ईस्वर! हमको सुख दो. आप महान हो. और उपासना योग यज्ञ अभ्यास में देवों (पृथ्वी, गुदा , जल-पेडू,अग्नि-नाभि,वायु-ह्रदय, आकाश-कंठकूप, चन्द्र-सूर्य-दोनों आँखों, तीसरा नेत्र , मन-बुद्धि आदि) को यजन चाहने वाले, इनको सयुक्त करने वाले मनुष्यो को प्राप्त होने वाले हो. उपासनायोग यज्ञ स्थल (मस्तिस्क के आकाश) में विराजने को प्राप्त होते हो. अर्थार्त ध्यान में यहाँ आकर ठहर जाना है, साक्षी भाव से यहाँ देखते रहना है, निर्विचार होकर यहाँ विराजना है, तभी यहाँ परमात्मा उतरता है.
—-राजिंदर वैदिक


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