Sunday, October 18, 2015

| बड़ा बनो | एक बार एक नवयुवक किसी संत के पास पहुँचा. और बोला “महात्मा जी, मैं अपनी ज़िन्दगी से...

| बड़ा बनो |

एक बार एक नवयुवक किसी संत के पास पहुँचा. और बोला

“महात्मा जी, मैं अपनी ज़िन्दगी से बहुत परेशान हूँ, कृपया मुझे इस परेशानी से निकलने का उपाय बताएं संत बोले, “पानी के ग्लास में एक मुट्ठी नमक डालो और उसे पीयो.”

युवक ने ऐसा ही किया.

“इसका स्वाद कैसा लगा?”, संत ने पुछा।

“बहुत ही खराब … एकदम खारा.” – युवक थूकते हुए बोला.

संत मुस्कुराते हुए बोले,

“एक बार फिर अपने हाथ में एक मुट्ठी नमक लेलो और मेरे पीछे-पीछे आओ.“ दोनों धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगे और थोड़ी दूर जाकर स्वच्छ पानी से बनी एक झील के सामने रुक गए.

“चलो, अब इस नमक को पानी में दाल दो.” संत ने निर्देश दिया।

युवक ने ऐसा ही किया.

“अब इस झील का पानी पियो.”, संत बोले.

युवक पानी पीने लगा …,

एक बार फिर संत ने पूछा,

“बताओ इसका स्वाद कैसा है, क्या अभी भी तुम्हे ये खारा लग रहा है?”

“नहीं, ये तो मीठा है, बहुत अच्छा है”, युवक बोला.

संत युवक के बगल में बैठ गए और उसका हाथ थामते हुए बोले,

“जीवन के दुःख बिलकुल नमक की तरह हैं;

न इससे कम ना ज्यादा. जीवन में दुःख की मात्रा वही रहती है, बिलकुल वही. लेकिन हम कितने दुःख का स्वाद लेते हैं

ये इस पर निर्भर करता है कि हम उसे किस पात्र में डाल रहे हैं .

इसलिए जब तुम दुखी हो तो सिर्फ इतना कर सकते हो कि खुद को बड़ा कर लो …ग़्लास मत बने रहो झील बन जाओ.


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