Saturday, October 24, 2015

8954572491~भूपेश आर्य आर्य जाति के गौरव और उनकी महारानी को कौन नहीं जानता? कयी दिन बाद आज घास की...

8954572491~भूपेश आर्य
आर्य जाति के गौरव और उनकी महारानी को कौन नहीं जानता?
कयी दिन बाद आज घास की रोटी मिल पायी थी।प्यारी बेटी चम्पा की रोटी वन बिलाव ले गया।
बालिका के इस कष्ट को महाराणा सह न सके।
हल्दी घाटी का सेनानी अधीर है उठा।सन्धि पत्र लिखने ही लगे थे कि महारानी ने कलम थाम ली,वे बोलीं-
‘प्राणेश्वर! क्या इसी दिन को देखने के लिए हम लोगों ने स्वाधीनता-व्रत लिया था ! जिस समय आपका सन्धि पत्र साही दरबार में पहुंचेगा,आपकी वीरता और साहस की स्तुति करने वाला अकबर क्या कहेगा? क्या आपको स्मरण नहीं है कि हल्दी घाटी युद्ध समाप्ति पर शक्तिसिंह ने अपनी जान की बाजी लगाकर भी हो नीला घोडा रा असवार'कहकर आपको पुकारा था ?
यदि वह जानते कि मेवाड का सूर्य विपत्तियों के बादल में छिप जायेगा,स्वाधीनता के चन्द्रमा को ग्रहण लग जायेगा तो वे कभी आपकी सहायता न करते।
प्रताप ने कहा-'राजरानी !पर जंगल में रहकर तो तुम राजरानी नहीं बन सकती।और ये नन्हें नन्हें बच्चे——–’
रानी का गला भर आया,राजपूतानी की देह में आग लग गयी,चेहरा तमतमा उठा।
उस वीर क्षत्राणी ने कहा-'मेवाड के राजमहलों पर आग लगे,यदि वें दुष्ट यवनों की पराधीनता की बेडी में जकडनें के साधन हैं।
प्राणेश ! आप मेरी परिक्षा न लें।
आप भली भांति जानते हैं कि धर्म तथा मर्यादा के पुजारियों के लिए घास की रोटी ही मीठी है,उनको पकवान नहीं चाहिए।
प्रभो! आप धर्म पथ से विचलित न हों।’
अहा ! पातिव्रत धर्म का यह उदाहरण कितना ह्रदयग्राही है।
इस सन्दर्भ में वैदिक स्वर्ग की एक और झांकी देखिये।
कर्तव्य और मोह के झूले पर चूडावत सरदार झूल रहे हैं।
वे युद्ध क्षेत्र की और कूच अवश्य कर रहे हैं पर मन नयी रानी में उलझा है।
सेवक रानी के पास प्रेम निशानी 'मुद्रा’ लेने पहुंचता है।
पर यह क्या दूसरे ही क्षण हाडी रानी का लालिमा युक्त सिर कट कर थाल में गिरता है।
रानी यह कहते कहते इस नश्वर चोले को त्याग देती है:-सरदार को चाहिए कि वे इस प्रेम निशानी को पाकर अपने कर्तव्य का द्रढता से पालन करें आपकी रानी स्वर्ग में आपकी प्रतीक्षा करेंगी।’’
हाडी रानी तुम धन्य हो !
जब तक सूर्य चन्द्र है,जब तक गंगा यमुना में जल है,तुम्हारे आत्म बलिदान की यह पुण्य गाथा अमर रहेगी।


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