Tuesday, October 20, 2015

Rajinder Kumar Vedic ओउम . मेरी सोच (भाग-5.) राजिंदर वैदिक महा.शान्तिपर्वणि. मोक्षधर्म. अ.190...

Rajinder Kumar Vedic


ओउम .
मेरी सोच (भाग-5.) राजिंदर वैदिक
महा.शान्तिपर्वणि. मोक्षधर्म. अ.190 ;,“ सत्य ही परमात्मा है, सत्य ही तप है, सत्य ही प्रजा की सृस्टि करता है, सत्य के ही आधार पर संसार टिका हुआ है और सत्य के ही प्रभाव से मनुष्य स्वर्ग में जाता है और असत्य अंधकार का रूप है. वह मनुष्य को नीचे गिराता है. अज्ञान के अंधकार से घिरे हुए मनुष्य तमोगुण से ग्रस्त होकर ज्ञान के प्रकाश को नही देख पाते है.”
महा. शान्तिपर्वणि. मोक्षधर्म. अ.200 ,“जो झूठ बोलने वाला है, उस मनुष्य को न इस लोक में सुख मिलता है और न परलोक में ही. वह अपने पूर्वजो को भी नही तार सकता है, फिर भविष्य में होने वाली संतति का उद्धार तो कर ही कैसे सकता है. परलोक में सत्य जिस प्रकार जीवो का उद्दार करता है, उस प्रकार यज्ञ, वेद का अध्यन , दान और नियम नही नही तार सकते है. लोगो ने अब तक जितनी त्यस्याए की है और भविष्य में भी जितना करेंगे, उन सबको सौ गुना या लाख गुना करके एकत्र किया जाये तो भी उनका महत्त्व सत्य से बढ़कर नही सिद्ध होगा. वेदो में सत्य ही जागता है, उसमे उसी की महिमा बताई गई है. धर्म और इन्द्रिय संयम की सिद्धि भी सत्य से ही होती है. किसी समय धर्म और सत्य को तराजू पर रख कर तोला गया, उस समय जिस ओर सत्य था, उधर का ही पलड़ा भारी हुआ. जहाँ धर्म है, वहाँ सत्य है. सत्य से ही सबकी वृदि होती है.
तीसरा मन की शुद्धि के लिए "अस्तेय” का पालन करना चाहिए. अन्यायपूर्वक किसी के धन, द्रव्य अथवा अधिकार का हरण करना स्तेय है. चौथा मन की शुद्धि के लिए ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए. मैथुन तथा अन्य किसी भी प्रकार से भी वीर्य का नाश न करते हुए जितेंद्रिय रहना ही ब्रह्मचर्य है. पूर्णतया ब्रह्मचर्य का पालन वही कर सकता है, जो ब्रह्मचर्य का नाश करने वाले पदार्थो के भक्षण तथा काम के उद्दीपन करने वाले दृश्यों को देखने ओर इसी प्रकार की वार्ताओं के सुनने तथा ऐसे विचारो को मन में लेन से भी बचता रहे. ब्रह्मचर्य ही उत्कृष्ट तप है. इससे बढ़कर तपश्चर्य दूसरी नही हो सकती है. उधर्ववेत्ता पुरुष इस लोक में मनुष्य रूप में प्रत्यक्ष देवता ही है. बर्ह्मचय की महिमा महान है. सम्पूर्ण विश्व के प्राणियों में जो जीवनकला दिखलायी देती है, वह सब ब्रह्मचर्य का ही प्रताप है. जीवनकाल में सौंदर्य , तेज , आनंद, उत्शाह , सामर्थ, आकर्षकत्त्व और संजीवतत्व आदि अनेनानेक उत्तम गुणों का समावेश ब्रह्मचर्य से ही होता है. ब्रह्मचारी पुरुष के लिए संसार में कोई बात असंभव और अप्राप्त नही है. शरीरीरक, मानसिक, सामाजिक आदि सारी शक्तिया ब्रह्मचर्य पर निर्भर है. एक स्वस्थ शरीर के सदृश बर्ह्मचय का पालन करता हुआ मनुष्य समाज में सुख और शांति को प्राप्त होता है. 25 वर्ष तक अखंड ब्रह्मचारी रहने के पश्चात ग्रस्थाश्रम में प्रवेश करके शास्त्रानुसार केवल संतान की उत्पति के लिए ऋतू समय पर स्त्री संयोग करने से ब्रह्मचर्य व्रत नही टूटता है.अर्थार्त ऋतुकाल में अपनी धर्मपत्नी से विधियुक्त शास्त्रानुसार केवल संतान उत्त्पति के लिए समागम करने वाला पुरष गृहस्थाश्र में रहते हुए भी ब्रह्मचर्य ही है.—-क्रमश….
–राजिंदर वैदिक


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